For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रह गए हम -ग़ज़ल- बसंत कुमार शर्मा

मापनी 2122  2122 212

 

दूर से  नजरें  मिलाते  रह गए हम  

पास उनके आते’ आते रह गए हम

 

कान  पर जूं  तक न रेंगी साहिबों के,

हक़ की खातिर गिड़गिड़ाते रह गए हम   

 

तल्खियाँ हर बात में उनकी रहीं हैं,

प्यार की धुन गुनगुनाते रह गए हम

 

माल लेकर चल दिये वो तो वहाँ से,

स्टेज पर फोटो खिंचाते रह गए हम

 

फुर्र हो कर आसमानों में उड़े वो,

धूल धक्कड़ में नहाते रह गए हम

 

जब मिला मौका उन्होंने दाँव खेले,

प्यार के रिश्ते निभाते रह गये हम

 

इन मकानों का करें तो अब करें क्या,

स्वप्न घर का बस सजाते रह गए हम

 "मौलिक एवं अप्रकाशित "

Views: 758

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 1, 2017 at 1:23pm

आदरणीय   laxman dhami जी, हौसलाफजाई  के लिए  आपका दिल से शुक्रिया 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 1, 2017 at 11:52am

हार्दिक बधाई स्वीकारें।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 1, 2017 at 10:08am

आदरणीय Gurpreet Singh जी, हौसलाफजाई  के लिए  आपका दिल से शुक्रिया 

आपने सही पकड़ा, मापनी गलत लिख गई है 

मापनी २१२२ २१२२ २१२२ है ,इसी तरह स्नेह बनाये रखिये सादर 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 1, 2017 at 10:08am

जी आदरणीय Samar kabeer जी मैंने संज्ञान ले लिया है , हौसला अफजाई के लिए दिल शुक्रिया आपका 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 1, 2017 at 10:07am

आदरणीय Nilesh Shevgaonkar  जी, हौसलाफजाई  के लिए  आपका दिल से शुक्रिया 

आपने सही पकड़ा, मापनी गलत लिख गई है 

मापनी २१२२ २१२२ २१२२ है ,इसी तरह स्नेह बनाये रखिये सादर 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 1, 2017 at 10:05am

 आदरणीय khursheed khairadi  जी, हौसलाफजाई  के लिए  आपका दिल से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 1, 2017 at 10:05am

 आदरणीय Mohammed Arif  जी, हौसलाफजाई  के लिए  आपका दिल से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 1, 2017 at 10:03am

आदरणीय Shyam Narain Verma जी हौसला अफजाई के लिए आपका दिल से शुक्रिया 

Comment by Gurpreet Singh jammu on August 1, 2017 at 9:22am

आदरणीय बसंत कुमार जी,, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है,, ऊपर मापनी आपने गलत लिख दी है,,, आपने 2122  2122 212 लिखा है जबकि ग़ज़ल 2122 2122 2122 पर है,

Comment by Samar kabeer on July 31, 2017 at 6:33pm
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
जनाब निलेश साहिब की बातों पर ध्यान दें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
10 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service