2122 2122 212
दूध में खट्टा गिरा लगता तो है
काम साज़िश से हुआ,लगता तो है
था हमेशा दर्द जीवन में, मगर
दे कोई अपना, बुरा, लगता तो है
बज़्म में सबको ही खुश करने की ज़िद
आदमी वो सरफिरा, लगता तो है
सच न हो, पर गुफ़्तगू हो बन्द जब,
बढ़ गया कुछ फासिला, लगता तो है
गर मुख़ालिफ हो कोई जुम्ला, मेरे
दोस्त अब दुश्मन हुआ, लगता तो है
ज़िन्दगी की फ़िक्र जो करता न था
मौत से वह भी डरा लगता तो है
खलबली जो है अंधेरों में अभी
सूर्य का रस्ता खुला, लगता तो है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।
साजिशन वाले मिसरे को अगर ऐसे कहूँ तो ?
जान कर ऐसा हुआ , लगता तो है --- अगर और कुछ आपको सूखे तो बताइयेगा
ज़िन्दगी की फ़िक्र जो करता न था -- यह सुधार बहुत सही है -- मै इसे स्वीकार करता हूँ , सलाह के लिये आपका हृदय से आभार ।
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