For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

= एक =
कोई ऐसी सज़ा न दे जाना.
ज़िंदगी की दुआ न दे जाना.
दिल में फिर हसरतें जगा के मेरे,
दर्द का सिलसिला न दे जाना.
वक्त नासूर बना दे जिसको-
यूँ कोई आबला न दे जाना.
सफ़र में उम्र ही कट जाए कहीं,
इस क़दर फ़ासला न दे जाना.
साँस दर साँस बोझ लगती है,
ज़िंदगी बारहा न दे जाना.
इस जहाँ के अलम ही काफ़ी हैं,
और तुम दिलरुबा न दे जाना.
पीठ में घोंपकर कोई ख़ंजर,
दोस्ती का सिला न दे जाना.
इल्म हर शय का उन्हें है "साबिर"
तुम कोई मशवरा न दे जाना.


= दो =
फ़िज़ा में कोहरा कितना घना है.
निकलने से ये पहिले सोचना है.
लहर के सामने टिक पायेगी क्या ?
जो पानी पर सजाई अल्पना है.
न घूमो जिस्म लेकर काग़ज़ों के,
प्रबल बरसात की संभावना है.
कहीं क़ालीन गंदे हों न उनके,
हमारा पाँव कीचड़ में सना है.
तेरे ख़्वाबों की परियाँ गुनगुनाएं,
इसी ख़ातिर उमर भर जागना है.
जुदा हो जायेंगे रस्ते हमारे,
धरी रह जायेगी जो योजना है.
मुझे बरबाद करके क्या मिला है,
कभी मिल जाएँ वो तो पूछना है.
दुआ घनघोर बारिश की न माँगो,
ये सारा गाँव मिट्टी से बना है.
गले तक आ गया "साबिर" ये पानी,
हर इक सूरत तेरा तय डूबना है.

Views: 439

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ. नमन दत्त on June 7, 2011 at 10:53am

आदरणीय सतीश जी और गणेश जी....

नवाज़िश, करम, शुक्रिया, मेहरबानी....आप लोगों की हौसलाअफ़ज़ाई के लिए....


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 7, 2011 at 9:32am
आदरणीय नमन दत्त साहिब, नमन है आपके कलम को, दोनों गज़ले बहुत ही खुबसूरत हैं, सभी शे'र उम्द्दा और भावपूर्ण लगे | बहुत बहुत बधाई आपको |
Comment by satish mapatpuri on June 7, 2011 at 2:42am
मुझे बरबाद करके क्या मिला है,
कभी मिल जाएँ वो तो पूछना है.
बहुत खूब दत्त साहेब, वाकई काबिले तारीफ़ ख्याल है. बधाई.  
Comment by डॉ. नमन दत्त on June 6, 2011 at 5:30pm
माननीय सौरभ पाण्डे जी तथा वीरेंद्र जैन साहब...आप दोनों के प्रति हार्दिक आभार कि आप दोनों ने अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया दी हमारी रचनाओं पर...आगे भी इसी अनुग्रह की अपेक्षा रखते हैं हम...अति-आभार...
Comment by Veerendra Jain on June 6, 2011 at 12:17pm

न घूमो जिस्म लेकर काग़ज़ों के,
प्रबल बरसात की संभावना है...

 

waah waah ..Dr saab..dono hi gazalen bahut hi shandar hai..badhai aapko..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 6, 2011 at 11:51am

नज़रों के सामने गुजरती हुयी तमाम में से पोस्टेड आपकी दूसरी ग़ज़ल ने हठात् अँटका लिया.

प्रत्येक भाव लाज़वाब, हर शेर कमाल.

//तेरे ख़्वाबों की परियाँ गुनगुनाएं,
इसी ख़ातिर उमर भर जागना है.//  ...  ... कहने को अब बचा क्या कि हालात क्या हैं..!!

//जुदा हो जायेंगे रस्ते हमारे,
धरी रह जायेगी जो योजना है.//  ........ बहुत खूब.

 

और इस शेर ने कुछ अधिक ही विश्वास हासिल किया है - 

//दुआ घनघोर बारिश की न माँगो,
ये सारा गाँव मिट्टी से बना है.// ...

बेहतर बंद के लिये बधाई और धन्यवाद.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service