जमुना अपने खिड़की से बाहर झांक रही थी , सामने एक सूखे हुए पेड़ पर एक बया आई , कुछ देर डाल पर बैठकर इधर उधर देखने लगी , और कुछ ही देर में फुर्र्र्रर्र्र करके उड़ गयी | दो तीन दिन यही क्रम चलता रहा |फिर उसने देखा - एक एक करके अपनी नन्ही सी चोंच में कहीं से तिनका लाती और धीरे धीरे अपने लिए एक घोंसला तैयार करती | इस मनोरम दृश्य को देखकर उनको अपने पुराने दिन याद आ गए | कमरे में उनके स्वर्गवासी पति की तस्वीर में वह खो गयीं |
एक छोटे से कमरे वाला घर | जमुना का पहला दिन | १५ साल की जमुना का विवाह चुन्नीलाल जी से हुआ था | जमुना के बापू ने यह रिश्ता तय कर दिया था , यह कह कर की लड़का सरकारी दफ्तर में क्लर्क है , और उसके बाप-दादाओं की गाँव में ज़मीन है | तीन महीने के भीतर ही उनका जीवन जैसे बदल गया था , अपना घर आँगन छोड़ कर वे किसी और के पल्ले बांध दी गयीं थी | बीदाई के दौरान माँ ने कहा ," सुन लाडो , अब से तू परायी हो गयी , अब तेरा ससुराल ही तेरा घर है और अपने घर जाकर अपने माँ-बाप की नाक मत कटवा लेना | ससुराल वालों की और अपने पति की खूब सेवा करना | "
पहले ही दिन जब वे अपने ससुराल आयीं , तो उनकी सास बोली , " सुन री बहु , यह तेरा मायका नहीं है , यहाँ अपने सर पर से घूंघट न हट पाए ध्यान रखना | "
जमुना को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था , एक ही दिन में वो अपने घर में परायी कैसे हो गई | यह सासु जी भी कह रहीं हैं घूँघट न हटे सर से इस बात का ध्यान रखना है , पर साडी तो पहली बार ही पहनी थी , अब मुझे यहाँ साडी कौन पहनायेगा ? मायके और ससुराल के अंतर को वह धीरे धीरे समझने लगी थी | सबसे बड़ी दिक्कत बहु के लिए यह होती थी कि एक ही कमरा था ,और एक छोटी सी रसोई | जमुना को रसोई में सोना पड़ता था , सो कुछ ऐसे नियम थे कि घर में सबके सोने के बाद ही वे सो पाती थी और तडके ही सबके पहले उनको उठाना होता था | उन्होंने अपने पति से इस बात की कोई शिकायत नहीं की वे ख़ुशी ख़ुशी से अपने घर को सँभालने में जुट गयीं थी , पर उनके पति को इस बात का दुःख था वे बोले , " भाग्यवान , मैं जानता हूँ कि तुमको कोई सुख नहीं दे पा रहा हूँ पर तुमसे वादा करता हूँ , एक दिन तुमको एक रानी की तरह रखूँगा , तुम्हारा अपना घर होगा , तुम्हारा अपना कमरा होगा | " जमुना कुछ न बोलीं , अपने पति को प्यार से निहारने लगी |
बादल और चन्द्रमा ने जैसे इस युगल जोड़ी के प्रेम को जान लिया था सो उन्होंने भी इस प्रेमी युगल का साथ दिया और चन्द्रमा बदालों में छुप गया , और यहाँ यह दोनों भी एक दूजे में खो गए |
अपने घर के सामने उसने एक बया को घोसला बनाते हुए देखा था , जमुना को धीरे धीरे घर गृहस्थी भी समझमे आने लगी थी , वे समझ चुकी थी कि बयां की तरह ही तिनका तिनका जोड़ कर एक घरोंदा बनाया जा सकता है | अपने पति से मिले पैसों से वे बचत करने लगीं , घर में छोटी मोटी सिलाई कढाई करने लगीं | उनकी सास को अपनी बहु के इस हुनर पर गर्व होता था | वे कहती , " वाह बहु , तुम तो बड़ी गुणवंती हो , घर के साथ साथ तुम में यह गुण भी हैं , आस पास की महिलाये भी उनको थोडा बहुत काम दे देती थी सो सिलाई बुनाई करके वे भी कुछ कमा लेती थीं | देखते ही देखते एक कमरे का मकान बढ़ता गया , और चुन्नीलाल जी ने अपना वादा पूरा किया | जमुना ने भी कोई कसर न छोड़ी और दोनों ने मिलकर अपना घरोंदा सजाया |
आज जमुना ८० के करीब की हो गयीं थी , उनके चार बेटे थे सभी की शादियाँ हो चुकी थी , बच्चों ने भी अपने माता पिता के नक़्शे कदम पर चलकर अपने घरौंदे को बचाए रखा | बहुओं के लाख कहने पर भी वे सब अलग नहीं हुए | धीरे धीरे बहुओं में भी परिवर्तन आया और एक घर क्या होता है यह एहसास उनको भी होने लगा , संयुक्त परिवार में कई चीज़े साझा हो जाती हैं , जीवन आसान हो जाता हैं , क्योंकि बाँट लिया जाता है सब कुछ |
आज चुन्नीलाल जी की तस्वीर के आगे जमुना खड़ी होकर बोलीं ." देखो जी , आप कहते थे न अपना घर भी इस बया के घोंसले जैसे सुंदर , सुघढ़ और मज़बूत होगा , देखो आज भी अपने बच्चों ने इसको वैसे ही सजा कर रक्खा है | "
तभी उनकी छोटी बहु कमरे में आती है और कहती है , " माँ, खाने पर सब आपका इंतज़ार कर रहें हैं , चलिए न" , फिर कुछ देर रुक कर बोलीं ," माँ अपने घर के सामने एक बया अपना घोंसला बना रही है , कितनी मेहनत और लगन से बना रही है न ? "
जमुना ने अपनी बहु को प्यार से देखा और मुस्कुराते हुए उसके सर पर हाथ रख दिया | दोनों के आँखों में भविष्य की खुशियाँ दिखाई दे रही थी |
मौलिक एवं अप्रकाशित
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