For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बया का घोसला (कहानी)

जमुना  अपने खिड़की से बाहर झांक रही थी , सामने एक सूखे हुए पेड़ पर एक बया आई , कुछ देर डाल पर बैठकर इधर उधर देखने लगी , और कुछ ही देर में फुर्र्र्रर्र्र करके उड़ गयी | दो तीन दिन यही क्रम चलता रहा |फिर  उसने देखा - एक एक करके अपनी नन्ही सी चोंच में कहीं से तिनका लाती और धीरे धीरे अपने लिए एक घोंसला तैयार करती | इस मनोरम दृश्य को देखकर उनको अपने पुराने दिन याद आ गए | कमरे में उनके स्वर्गवासी पति की तस्वीर में वह खो गयीं | 
एक छोटे से कमरे वाला घर | जमुना  का पहला दिन | १५   साल की जमुना  का विवाह चुन्नीलाल जी से हुआ था | जमुना  के बापू ने यह रिश्ता तय कर दिया था , यह कह कर की लड़का सरकारी दफ्तर में क्लर्क है , और उसके बाप-दादाओं की गाँव में ज़मीन है | तीन महीने के भीतर ही उनका  जीवन जैसे बदल गया था , अपना घर आँगन छोड़ कर वे किसी और के पल्ले बांध दी गयीं थी | बीदाई के दौरान माँ ने कहा ," सुन लाडो , अब से तू परायी हो गयी , अब तेरा ससुराल ही तेरा घर है और अपने घर जाकर अपने माँ-बाप की नाक मत कटवा लेना | ससुराल वालों की और अपने पति की खूब सेवा करना | " 
पहले ही दिन जब वे अपने ससुराल आयीं , तो उनकी सास बोली , " सुन री बहु , यह तेरा मायका नहीं है , यहाँ अपने सर पर से घूंघट न हट पाए ध्यान रखना | " 
जमुना  को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था , एक ही दिन में वो अपने घर में परायी कैसे हो गई | यह सासु जी भी कह रहीं हैं घूँघट न हटे सर से इस बात का ध्यान रखना है , पर साडी तो पहली बार ही पहनी थी , अब मुझे यहाँ साडी कौन पहनायेगा ? मायके और ससुराल के अंतर  को वह धीरे धीरे समझने लगी थी | सबसे बड़ी दिक्कत बहु के लिए यह होती थी  कि एक ही कमरा था ,और एक छोटी सी रसोई | जमुना  को रसोई में सोना पड़ता था , सो कुछ ऐसे नियम थे कि घर में सबके सोने के बाद ही वे सो पाती थी और तडके ही सबके पहले उनको उठाना होता था | उन्होंने अपने पति से इस बात की कोई शिकायत नहीं की वे ख़ुशी ख़ुशी से अपने घर को सँभालने में जुट गयीं थी , पर उनके पति को इस बात का दुःख था वे बोले , " भाग्यवान , मैं जानता हूँ कि तुमको कोई सुख नहीं दे पा रहा हूँ पर तुमसे वादा करता हूँ , एक दिन तुमको एक रानी की तरह रखूँगा , तुम्हारा अपना घर होगा , तुम्हारा अपना कमरा होगा | " जमुना  कुछ न बोलीं , अपने पति को प्यार से निहारने लगी | 
बादल और चन्द्रमा ने जैसे इस युगल जोड़ी के प्रेम को जान लिया था सो उन्होंने भी इस प्रेमी युगल का साथ दिया और चन्द्रमा बदालों में छुप गया , और यहाँ यह दोनों भी एक दूजे में खो गए | 
अपने घर के सामने उसने एक बया को घोसला बनाते हुए देखा था , जमुना  को धीरे धीरे घर गृहस्थी भी समझमे आने लगी थी , वे समझ चुकी थी कि बयां की तरह ही तिनका तिनका जोड़ कर एक घरोंदा बनाया जा सकता है | अपने पति से मिले पैसों से वे बचत करने लगीं , घर में छोटी मोटी सिलाई कढाई करने लगीं | उनकी सास को अपनी बहु के इस हुनर पर गर्व होता था | वे कहती , " वाह बहु , तुम तो बड़ी गुणवंती हो , घर के साथ साथ तुम में यह गुण भी हैं , आस पास की महिलाये भी उनको थोडा बहुत काम दे देती थी सो सिलाई बुनाई करके वे भी कुछ कमा लेती थीं | देखते ही देखते एक कमरे का मकान बढ़ता गया , और चुन्नीलाल जी ने अपना वादा पूरा किया | जमुना  ने भी कोई कसर न छोड़ी और दोनों ने मिलकर अपना घरोंदा सजाया | 
आज जमुना  ८० के करीब की हो गयीं थी , उनके चार बेटे थे सभी की शादियाँ हो चुकी थी , बच्चों ने भी अपने माता पिता के नक़्शे कदम पर चलकर अपने घरौंदे  को बचाए रखा | बहुओं के लाख कहने पर भी वे सब अलग नहीं हुए | धीरे धीरे बहुओं में भी परिवर्तन आया और एक घर क्या होता है यह एहसास उनको भी होने लगा , संयुक्त परिवार में कई चीज़े साझा हो जाती हैं , जीवन आसान हो जाता हैं , क्योंकि बाँट लिया जाता है सब कुछ | 
आज चुन्नीलाल जी की तस्वीर के आगे जमुना  खड़ी होकर बोलीं ." देखो जी , आप कहते थे न अपना घर भी इस बया के घोंसले जैसे सुंदर , सुघढ़ और मज़बूत होगा , देखो आज भी अपने बच्चों ने इसको वैसे ही सजा कर रक्खा है | " 
तभी उनकी छोटी बहु कमरे में आती है और कहती है , " माँ, खाने पर सब आपका इंतज़ार कर रहें हैं , चलिए न" , फिर कुछ देर रुक कर बोलीं ," माँ अपने घर के सामने एक बया अपना घोंसला  बना रही है , कितनी मेहनत और लगन से बना रही है न ? " 
जमुना  ने अपनी बहु को प्यार से देखा और मुस्कुराते हुए उसके सर पर हाथ रख दिया | दोनों के आँखों में भविष्य की खुशियाँ दिखाई दे रही थी |
मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 817

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by surender insan on August 16, 2017 at 10:02am
आदरणीया कल्पना भट्ट जी कहानी बहुत सुंदर हुई है जी ।बधाई स्वीकार करे जी।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 15, 2017 at 9:45pm

आदाब आदरणीय समर भाई जी ,, इसमें माफ़ी की कोई बात ही नहीं हैं आप सब के बीच ही तो सीख रहीं हूँ , आप सभी निष्पक्ष हो कर जब कुछ कहते हैं तो अच्छा ही लगता है , अपनी कमजोरियों से अवगत होती हूँ , आपका हुकुम सर आँखों पर नाम बदल देती हूँ | सादर धन्यवाद | 

Comment by Samar kabeer on August 15, 2017 at 8:10pm
बहना कल्पना भट्ट जी आदाब,पहली टिप्पणी नादानी में हुई,जिसका अहसास जनाब रवि जी ने दिलाया,मुआफ़ी चाहता हूँ,कहानी को लघुकथा समझ बैठा ।
कहानी आपने अच्छी लिखी है,लेकिन इसमें कुछ कमियाँ भी हैं,जिससे निराश होने की ज़रूरत नहीं,पहली बात शीर्षक 'बयाँ'ग़लत है सही शब्द है "बया",दूसरी बात कहानी के मुख्य पात्र का नाम 'मुन्नी बाई'अच्छा नहीं लग रहा है,पहली नज़र में ऐसा लगता है कि ये किसी तवायफ़ है, इसलिये नाम कुछ और होना चाहिए ।
वैसे इन चीज़ों को नज़र अंदाज़ कर दिया जाये तो कहानी अच्छी हुई,इसके लिये बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Samar kabeer on August 15, 2017 at 6:53pm
ओह,मुआफ़ी चाहूँगा,कहानियां यहां दिखाई नहीं देतीं,और लघुकथा की आदत पड़ गई है,ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया ।
Comment by Ravi Prabhakar on August 15, 2017 at 6:47pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, शीर्षक के ब्रैक्‍ेट में इसे कहानी लिखा गया है लघुकथा नहीं

Comment by Samar kabeer on August 15, 2017 at 6:44pm
बहना कल्पना भट्ट जी आदाब,लघुकथा एक क्षण में घटित होने वाली घटना होती है,आपकी लघुकथा ज़रूरत से ज़ियादा तवील(लम्बी)हो गई है,बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service