छन्न पकैया छन्न पकैया , आयी बरखा रानी
बोली बच्चों अंदर बैठो , मेरी बूढ़ी नानी |
छन्न पकैया छन्न पकैया , भूख लगी है नानी
गरमा गरम पकौड़े खाएं , बोली गुड़ियाँ रानी |
छन्न पकैया छन्न पकैया , सबर रखो तुम मुनिया
मंडी से लाना होगा अब , प्याज , मिर्च औ धनियाँ|
छन्न पकैया छन्न पकैया , मिलकर खाओ भैया
आओ फिर हम नाचे गायें, करके ता ता थैया |
छन्न पकैया छन्न पकैया , जब जब भरता पानी
छप छप करते हैं पानी में , करते हम मनमानी |
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आदरणीया कल्पना जी , सार छंद बढिया रचे हैं आपने , हार्दिक बधाइयाँ !
बारिश की मस्ती को खूब पिरोया है आपने छंदों में . हार्दिक बधाई आदरणीया कल्पना जी
जी सर 'बोली बच्चों अंदर बैठो ' सही लग रहा है | सादर धन्यवाद आदरणीय |
जी सर गेयता में बोली बच्चों अंदर बैठो सही लग रहा है | सादर धन्यवाद आदरणीय |
आदरणीया कल्पना भट्ट जी सादर, बहुत सुंदर सार छंद रचे हैं आपने. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. फिरभी लिखने के साथ छंद को गाकर भी देखें तो प्रवाह से शब्द संयोजन में मदद होगी. जैसे 'अन्दर बैठो बच्चों बोली' इस पंक्ति को 'बोली बच्चों अन्दर बैठो' कर देखें गेयता बढती है या नहीं. सादर.
सादर धन्यवाद सभी पाठकों को |
धन्यवाद आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी |
धन्यवाद् आदरणीया सुनंदा जी |
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