देख , रुचि - " अंश बहुत अच्छा लड़का है । घर के लोग भी कुलीन हैं और फिर बैंगलोर में ही है । शादी के बाद तुझे जॉब भी स्विच नहीं करना पड़ेगा । तेरे पिताजी ने तो पंडित जी से कुंडली भी मिलवा ली है।
अब तू ,ना ... मत करना । इन्हें भी तेरी बहुत चिंता है । एक ही साल तो रह गया है रिटायर होने में ।।
नहीं माँ , ... " मैं कितनी बार बोल चुकीं हूँ । अभी मुझे शादी नहीं करनी । जब करनी होगी तो बता दूँगी ।"
" क्यों नहीं करनी ... ?"
" आखिर , तेरे हाथ पीले करना हमारा फर्ज है । धीरे - धीरे समय भी गुज़रता जा रहा है । हर काम का एक समय नियत है । समय रहते काम हो , तभी अच्छा लगता है । यदि तेरे दिल में कोई और बात है तो खुल कर बोल ... न । हम तेरी हर खुशी में राजी हैं । मैं मना लूँगी तेरे पिताजी को , तू बोल तो सही ।"
नहीं ,माँ ... " ऐसी - वैसी कोई बात नहीं है । तू मुझे गलत समझ रही है ।"
तो फिर सही क्या है ... ?
अरे ! माँ - अब तू नहीं मानती तो , ...... सुन।
" आप लोगों ने हम दोनों बहनों को बड़े लाड़ - दुलार से पाला - पोसा । हमारी शिक्षा दीक्षा से लेकर हमारे शौक , पसंद -नापसंद में कभी कोई कमी नहीं आने दी । इसी कारण पिताजी ने अपने मकान बनाने तक के बारे में कभी नहीं सोचा । अब पिताजी के रिटायर होने पर ये क्वार्टर खाली करना ही पड़ेगा न। "
फिर श्रेया की पढ़ाई भी शेष है । अब तू ही बता ," मेरा भी कुछ फर्ज बनता है कि नहीं ?"
माँ , मैं ने तो प्रण किया है - " जब तक हम अपने घर में नहीं पहुँच जाएँगे । तब तक मैं शादी नहीं करूँगी ।"
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सकारात्मक सोच पर बुनी प्रभावशाली कथा ..हार्दिक बधाई आपको आदरणीय
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