For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

" हेलो - क्या हाल है , आसिफ ? " मैं तो ठीक हूँ तलत ,
" लेकिन मौसम बहुत बेकार है दिन भर बादलों की आना जाना जारी है लेकिन बारिश की कोई संभावना नज़र नहीं आती । घनघोर घटाएँ छाती तो हैं लेकिन वैसी बारिश नहीं होती जैसी होनी चाहिए। हलकी फुल्की फौहार थोड़ी देर के लिए माहौल में ठंडक पैदा कर देती। सूरज की तपिश इसी ठंडक को उमस में परिवर्तित कर देती है। बस ये उमस ही बर्दाश्त से बाहर है। बड़ी बेचैनी होती है। एक अजीब सी घुटन है। 
काश ! कोई इन घटाओं से कह दे आएं ही न। हम तो इस तपिश में भी जी ने के आदी है। एक सब्र तो हो कि इस साल बारिश होगी ही नहीं। "
और सुनाओ, तलत।" तुम्हारे क्या हाल हैं ? "
बहुत दिन से मुलाक़ात नहीं हुई। तुम आने - आने का कहती तो हो। लेकिन बस एक उम्मीद ही बंधाती हो। मैं इन्तिज़ार करता रहता हूँ ।लेकिन , जब तुम्हारा फोन आता है। 
" आज नहीं आ पाऊँगी।" तब बेचैन हो जाता हूँ ।
नहीं आना , तो पहले ही बताने में क्या हर्ज है।
उस दिन , आईं भी तो बस एक हवा के झोंके की तरह। इतनी जल्दी कि बस जाने की ही रट लगाए रखी। 
सुनो , अब आना तो ज़रा टाइम निकाल कर। पूरे सुकून के साथ। " ठीक उन घटाओं की तरह जो हवाओं को रोक देतीं हैं ताकि वो उनको उड़ा कर कहीं और न ले जा सके। और फिर जमकर बरसतीं हैं जब तक कि ये उमस पूरी तरह ठंडक में न बदल जाए। " हाँ , " आसिफ़, सोच तो ऐसा ही कुछ मैं भी रही हूँ। लेकिन क्या करूँ हालात इजाज़त ही नहीं देते। फिर भी कोशिश करुँगी ... ... ... । 

Views: 612

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 24, 2017 at 7:26pm
आपकी बढ़िया लेखनी का यह अंदाजेबयां भी भा गया। तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब मुज़फ़्फ़रपुर इक़बाल सिद्दीकी साहब। शिरक़त करते रहिएगा यहां यूं ही।
Comment by pratibha pande on August 22, 2017 at 8:33am

  एक कविता की तरह कही गई कहानी .. इंतज़ार मे.प्रेमी के दिल का हाल  बारिश में पैदा उमस जैसा  ..बधाई प्रेषितहै  कथा पर आपको आदरणीय मुज्फफर इकबाल साहिब  

Comment by Samar kabeer on August 21, 2017 at 10:36pm
जनाब मुज़फ़्फ़र इक़बाल साहिब आदाब,आपकी लघुकथा पसन्द आई,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
कृपया मंच पर अपनी सक्रियता बनाये रखें ।
Comment by Nita Kasar on August 21, 2017 at 7:45pm
मौसम ,हवाओ को प्रतीक बनाकर सुंदर कथा लिखी है ।बधाई आपको आद०मुजफ्फर इक़बाल जी ।
Comment by नाथ सोनांचली on August 20, 2017 at 3:35pm
आदरणीय मुज़फ़्फर इक़बाल जी आदाब, लघुकथा का प्रयास अच्छा है । मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by Mohammed Arif on August 20, 2017 at 9:50am
आदरणीय मुज़फ़्फर इक़बाल जी आदाब, लघुकथा का प्रयास अच्छा है । मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
12 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service