For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"मानसून की पहली बारिश का मज़ा" (लघुकथा - हास्य व्यंग्य)

मौसम विभाग ने तो मई के अंतिम सप्ताह में ही सम्भावना व्यक्त कर दी थी कि इस साल औसत से कहीं अधिक बारिश होगी । सभी लोग इस खबर को पढ़ कर खुश भी थे ।   कल रात से ही मानसून का सिस्टम सक्रिय हो गया । बहुत तेज़ गरज के साथ बादलों की आवाजाही होने लगी। 

 एक दम काली घटा ने सारे आसमान पर जैसे क़ब्ज़ा जमा लिया हो। रात से ही मूसलाधार बारिश हो रही थी।   सौरभ जैसे ही सुबह दस बजे घर से आफिस के लिए कार में जैसे ही बैठा , श्रुति बारिश में भीगती आईं , कार के पास । विंडो का शीशा उतरवा कर सख्ती से हिदायत की । 
"बारिश बहुत तेज़ है । गाड़ी बहुत आराम से धीरे -  धीरे चलाना । अगर और तेज़ हो जाए तो कहीं एक जगह खड़ी कर लेना और जब कम हो जाए , तभी आगे जाना ।"
सौरभ ने भी एक आज्ञाकारी शिष्य की भांति, " हाँ " में सर हिलाते हुए कहा , ठीक है । और फिर हाथ हिलाते हुए बाय बाय किया ।
सौरभ जैसे ही आगे बढ़ा बारिश और तेज़ हो गई ।
 "श्रुति भी न, ... ... ... जिस दिन किसी बात की ताकीद भर दे । समझो फिर तो वही होना है । ये बीवियाँ भी बुढ़ापे में इतनी केयरिंग ही जातीं हैं कि ज़िन्दगी के इतने सारे तजुर्बे से पैदा हुआ आत्मविश्वास भी हिल जाता है । अब गाड़ी कहाँ खड़ी करूँ।" सोचने लगा ।
फिर गाड़ी कहीं एक जगह खड़ी करने के बजाय अपने आप से बड़बड़ाते हुए आगे बढ़ता हुआ किसी तरह आफिस पहुँच ही गया। आफिस में चेयर पर बैठते ही मोबाइल पर अप्डेट्स चेक करने लगा। 
श्रुति ने व्हाट्सएप पर पूँछा था , - " पहुंच गए ???" 
 " हाँ , श्रुति !!! " सौरभ ने भी जवाब दिया ।
फिर बड़े चाव से वही गुड मॉर्निंग के गुलदस्तों वाले फ्रेंड्स के अप्डेट्स चेक करने लगा । आज तो गुड मॉर्निंग के साथ हैप्पी मानसून और हैप्पी रैनी डे से भरे पड़े थे । सब बहुत खुश भी थे । आज आफिस में भी दिन भर अच्छा रहा । सब लोग भीगते - भागते आते - जाते रहे ।
पता ही नहीं चला कब पाँच बज गए । आफिस से निकला ही था कि श्रुति का फ़ोन आ गया ।
" सौरभ तुमने व्हाट्सएप पर मेरा मैसेज देखा ही नहीं ।मजबूरी में तुम्हें फ़ोन करना पड़ा ।"
सौरभ तो घबरा ही गया अब क्या हुआ ।
"अरे सॉरी श्रुति ,  नेट तो बहुत देर से ऑन था पर मोबाइल टेबल पर पड़ा हुआ था ।"
"बोलो कैसे फ़ोन किया ? "
अरे बारिश तो बंद होने का नाम ही नहीं ले रही । अपने यहाँ आज रात मेहमान भी आने वाले हैं । कहीं ऐसा न हो कि झड़ी लग जाए । तुम ऐसा करना दो किलो प्याज़ और एक किलो आलू ले लेना । बाकी सामान की लिस्ट व्हाट्सएप पर सेंड कर दी है ।
सौरभ ने फिर आज्ञाकारी शिष्य की भांति मन ही मन में फिर " यश मेडम " कहा और फ़ोन पर ही सर भी हिला दिया । जैसे श्रुति सामने खड़ी हो ।
"हाँ श्रुति !" ठीक है। लेकिन , तुम ऐसा करना , पकोड़े तैयार करके रखना । मैं ने तो गाड़ी स्टार्ट कर ही ली समझो ।"
" अरे ...  प्याज़ लाओगे तब न बनेंगे पकोड़े । तुम्हें भी कब अक्ल आएगी, सौरभ "
"अरे हाँ श्रुति,  मैं तो भूल ही गया था बस अभी आया ।"
( मौलिक व् अप्रकाशित )
- मुज़फ़्फ़र
- भोपाल

Views: 753

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by MUZAFFAR IQBAL SIDDIQUI on July 18, 2018 at 10:06pm

आप सब के इतने खूबसूरत कमैंट्स पढ़ कर दिल खुश हो गया। मैं वक़्त रहते देख नहीं पाया, इसका अफ़सोस है ।  आदरणीय   Mohammed Arif , Neelam Upadhyaya   babitagupta  Samar kabeer   सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'  Sheikh Shahzad Usmani आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया। 

Comment by vijay nikore on July 12, 2018 at 12:58pm

लघु कथा अच्छी लगी... हार्दिक बधाई

Comment by Mohammed Arif on July 9, 2018 at 8:46pm

आदरणीय मुज़फ़्फ़र साहब आदाब,

                             घर से ऑफिस और फिर पत्नी जी हिदायत और केयरिंग के बीच बारिश । बहुत ही बेहतरीन कथानक । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

नोट:- शाम 8:44 पर तेज़ बारिश हो रही थी और मैं आपकी लघुकथा पर टिप्पणी गलियारे में कुर्सी पर बैठा कर रहा था ।

Comment by Neelam Upadhyaya on July 9, 2018 at 1:46pm

आदरणीय  मुज़फ्फर इक़बाल साहब, नमस्कार ।  काश हम भी ऐसी बारिश का मुकाबला करते और दफ्तर से घर के लिए भीगते हुए मेट्रो तक पहुँचते।  पर  मॉनसून का आना मात्र एक रस्म निभायगी  बन  कर रह गयी । बहुत बढ़िया प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई । 

Comment by babitagupta on July 8, 2018 at 5:39pm

 बारिश पर  कघुकथा पढ़कर शुष्क वर्षा ऋतू में बारिश  का अनुभव करवा दिया.हार्दिक   बधाई स्वीकार  कीजियेगा आदरणीय सरजी 

Comment by Samar kabeer on July 8, 2018 at 2:52pm

जनाब मुज़फ़्फ़र इक़बाल साहिब आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by नाथ सोनांचली on July 8, 2018 at 9:18am

आद0 मुज़फ्फर इकबाल जी सादर अभिवादन। बढ़िया लघुकथा कही आपने। वैसे अभी तक हमारे यहाँ कोई खास बारिश हुई नही है,, अतएव आपकी लघुकथा के माध्यम से ही बारिश का आनन्द ले रहा हूँ। बहुत बहुत बधाई आपको।

Comment by MUZAFFAR IQBAL SIDDIQUI on July 8, 2018 at 6:40am

बहुत बहुत शुक्रिया, शेख साहब। 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 7, 2018 at 11:39pm

वाह। भिगो दिया बरसात की शाब्दिक बौछार ने। हार्दिक बधाइयां आदरणीय मुज़फ़्फ़र इक़बाल सिद्दीक़ी साहिब।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
9 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
16 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
16 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service