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नए चेहरों की कुछ दरकार है क्या ।
बदलनी अब तुम्हें सरकार है क्या ।।
बड़ी मुश्किल से रोजी मिल सकी है ।
किया तुमने कोई उपकार है क्या ।।
सुना मासूम की सांसें बिकी हैं ।
तुम्हारा यह नया व्यापार है क्या ।।
इलेक्शन लड़ गए तुम जात कहकर ।
तुम्हारी बात का आधार है क्या ।।
यहां पर जिस्म फिर नोचा गया है ।
यहां भी भेड़िया खूंखार है क्या ।।
बड़ी शिद्दत से मुझको पढ़ रहे हो ।
मेरा चेहरा कोई अखबार है क्या ।।
हिजाबों में खरीदारों की रौनक ।
गली में खुल गया बाज़ार है क्या ।।
बहुत दिन से कसीदे लिख रहे हैं ।
कलम में आपके भी धार है क्या ।।
कदम उसके जमीं पर अब नहीं हैं ।
हुआ कुछ चांद का दीदार है क्या ।।
तबस्सुम पर तेरे हैरत हुई है।
गमों की हो गयी भरमार है क्या ।।
महज मजहब मेरा पूछा था उसने ।
कहा तू देश का गद्दार है क्या ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय नवीन भाई , अच्छी गज़ल कही है , बधाइयाँ स्वीकार करें । आ. समर भाई की की बातों का खयाल कीजियेगा
आदरणीय नवीन मणि जी क्या खुब गजल कही है आपने हर श्ोर कमाल का लगा मुबारक बाद हाजिर है
और ये शेर हमें बहुत पसन्द आया
बड़ी शिद्दत से मुझको पढ़ रहे हो ।
मेरा चेहरा कोई अखबार है क्या ।। वाह वाह । पुन: बधाई सादर
आदरणीय नविन जी,
उम्दा ग़ज़ल हुई है.दाद के साथ मुबारकबाद.
'गमों का हो गया भरमार है क्या' में शायद 'गमों का' की जगह 'ग़मों की' होना चाहिए था.
सादर
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