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गजल(फिर गजल होगी....)

2122 2122 2122 222

फिर गजल होगी भली रुत को जरा आने तो दो
बंद छितराये पड़े हैं,और जुड़ जाने तो दो।1

राख में चिनगारियाँ भी चिलचिलाती रहती हैं,
बस हवा का एक झोंका अब गुजर जाने तो दो।2

भागता जाता बखत भी बेकली के रस्ते से
गुनगुनायेंगी दिशाएँ मीत अब गाने तो दो।3

ज़ोर है तनहाइयों का , मानता, डरना भी क्या?
दूरियाँ क्या साहिलों की?यार अकुलाने तो दो।4

चाहतों का सिलसिला कब माँगने से मिलता है?
तिश्नगी बढ़ती गयी अब और रिरियाने तो दो।5

वक्त ने कितना कहा पर मैं भटकता हूँ निशि-दिन,
भाव कुछ अपना बढ़ेगा अब पिघल जाने तो दो।6
मौलिक व अप्रकाशित
@

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Comment

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Comment by Manan Kumar singh on August 28, 2017 at 7:26pm
आदरणीया कल्पना जी,गजल के अशआर आपको अच्छे लगे,यह मेरी खुशनशीबी है।आपका शुक्रिया!
Comment by Manan Kumar singh on August 28, 2017 at 7:24pm
बहुत बहुत आभार आदरणीय सुरेन्द्र जी।
Comment by Manan Kumar singh on August 28, 2017 at 7:23pm
आभारी हूँ आदरणीय बृज जी।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 28, 2017 at 6:26pm

भागता जाता बखत भी बेकली के रस्ते से
गुनगुनायेंगी दिशाएँ मीत अब गाने तो दो।3

ज़ोर है तनहाइयों का , मानता, डरना भी क्या?
दूरियाँ क्या साहिलों की?यार अकुलाने तो दो।4

चाहतों का सिलसिला कब माँगने से मिलता है?
तिश्नगी बढ़ती गयी अब और रिरियाने तो दो।5  बहुत खूब |

हार्दिक बधाई |

Comment by नाथ सोनांचली on August 28, 2017 at 1:45pm
खूबसूरत ग़ज़ल पर बधाई आद0 मनन कुमार सिंह जी
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 28, 2017 at 12:01pm
बड़ी ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय..

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