भोर होने से पहले ...
वाह
कितनी अज़ीब
बात है
सौदा हो गया
महक का
गुल खिलने से
पहले
सज गयी सेजें
सौदागरों की आँखों में
शब् घिरने से
पहले
बट गया
जिस्म
टुकड़ों में
हैवानियत की
चौख़ट पर
भर गए ख़ार
गुलशन के दामन में
बहार आने से
पहले
वाह
इंसानियत के लिबास में
हैवानियत
कहकहे लगाती है
ज़िंदगी
दलालों की मंडी में
रोज मरती है
जीने की
भोर होने से
पहले
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय फूल सिंह जी सृजन पर आपकी मधुर प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय महेन्द्र कुमार जी सृजन आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का आभारी है।
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी भाई साहिब सृजन के भावों अपनी आत्मीय स्वीकृति देती प्रतिक्रिया का दिल से आभार।
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... प्रस्तुति को अपनी सहमति देती प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय मो.आरिफ साहिब, आदाब। .. सृजन के भावों पर आपकी मधुर प्रशंसा का हार्दिक आभार।
बहुत ही सुंदर, बधाई स्वीकार करें ।
आ. सुशील सरना जी. बहुत ही सशक्त कविता प्रस्तुत की है आपने. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
आदरनीय सुशील भाई , कुछ सोचने को बाद्ध्य करती है ये कविता ... बहुत खूब , हार्दिक बधाई ।
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