जब से तूने ..
जब से तूने
मुझे
अपनी दुआओं में
शामिल कर लिया
मैं किसी
खुदा के घर नहीं गया
जब् से तूने
अपने लबों पे
मेरा नाम
रख लिया
मैं
तिश्नगी भूल गया
जब से तूने
मेरी आँखों को
अपने अक्स से
सँवारा हे'
मेरे लबों ने
हर लम्हा
तुझे पुकारा है
जब से तूने
निगाह फेरी है
लम्स-ए-मर्ग का
अहसास होता है
वो शख़्स
जो तुझमें कहीं
सोता था
आज
दहलीज़े दीद को
भिगोता है
(लम्स-ए-मर्ग=मृत्यु का अहसास )
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी भाई साहिब प्रणाम , सृजन को अपने मधुर शब्दों से अलंकृत करने का दिल से आभार। आ. समर कबीर जी का सुझाव सदा मेरा पथ प्रदर्शित करता है। आपका और उनका मैं तहे दिल से आभारी हूँ। सृजन को पुनः प्रेषित कर रहा हूँ।
आदरणीय समर कबीर साहिब आदाब , सृजन के भावों की गहनता को आत्मीय मान देने का दिल से शुक्रिया। आपका इशारा मैं समझ गया हूँ और तदनुसार संशोधन कर रहा हूँ। आपकी ये छोटी छोटी बातें मेरे सृजन में नक्काशी का काम करती हैं। तहे दिल से शुक्रिया सर।
आदरनीय सुशील भाई , सुन्दर भाव अपूर्ण कविता के लिये बधाई आपको । आ. समर भाई जी की सलाह पर गौर कीजियेगा ।
आदरणीय फूल सिंह जी सृजन की आत्मीय सराहना का दिल से आभार।
आदरणीया कल्पना भट्ट जी सृजन के भावों की आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।
बेहतरीन
वाह बेहतरीन एहसास | हार्दिक बधाई आदरणीय |
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