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जब तू मिरा है .....,संतोष

जब तू मिरा है तो अपना लगता क्यूँ नहीं
दिल के आइने में साफ़ दिखता क्यूँ नहीं

अब नज़रें मिलती ही नहीं तिरी नज़रों से,
हसीन ख़्वाबों से फिर निकलता क्यूँ नहीं

दुनियाँ मुझे अब क्यूँ थमी सी लगती है
तू भी मौसम सा कुछ बदलता क्यूँ नहीं

ज़बां चुप और धड़कन भी तेज़ है ज़रा
तू नज़रों के इशारे समझता क्यूँ नहीं

ये जिस्म सर्द है बर्फ़ के मानिन्द'संतोष'
तू रगों में गर्म लहू सा दौड़ता क्यूँ नहीं

#संतोष खिरवड़कर
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 506

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Comment by santosh khirwadkar on September 7, 2017 at 6:45pm

अह्ह्ह्हह .क्या खूब.... चरण स्पर्श के साथ आभार आदरणीय समर साहब!!!
निः शब्द , ह्रदय से धन्यवाद ! मेरे मात्र साधारण शब्दों की पँक्तियों को सुन्दर 'ग़ज़ल" का रूप देने के लिए आप का आभार ! शब्दों का ये सृजन अकल्पनीय है!
आपकी कलम को मेरा नमन /सलाम समर्पित !!!

Comment by Samar kabeer on September 7, 2017 at 3:22pm
है शिकायत दिल को ऐसा क्यूँ नहीं
जब तू मेरा है तो लगता क्यूँ नहीं

जब नज़र से मिल नहीं पाती नज़र
ख़्वाब से बाहर निकलता क्यूँ नहीं

लग रही है क्यूँ थमी दुनिया मुझे
तू भी मौसम सा बदलता क्यूँ नहीं

है ज़बाँ चुप और धड़कन तेज़ है
तू इशारों को समझता क्यूँ नहीं

जिस्म ठण्डा पड़ गया'संतोष' का
आग अपनी उसको देता क्यूँ नहीं
----/
ये आपकी ग़ज़ल इस्लाह कर दी है,क़ाफ़िया अलिफ़ का,रदीफ़ 'क्यूँ नहीं,अरकान फ़ाइलातून फ़ाइलातून फ़ाइलुन,
Comment by santosh khirwadkar on September 7, 2017 at 7:44am
सलाम/प्रणाम आदरणीय आरिफ़ साहब !!हृदय से धन्यवाद !
Comment by Mohammed Arif on September 7, 2017 at 7:41am
आदरणीय संतोष खिरवड़कर जी आदाब, बेहतरीन प्रयास । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।ड क़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
Comment by santosh khirwadkar on September 6, 2017 at 7:43pm

चरण स्पर्श आदरणीय समर साहब , धन्यवाद !!
बेसब्री से इंतज़ार .........

Comment by Samar kabeer on September 6, 2017 at 5:47pm
जनाब संतोष जी आदाब,प्रयास अच्छा है,पुनः वापस आता हूँ ।

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