For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - वफ़ाओं के बदले वफ़ा चाहता हूँ

बह्र : 122 122 122 122

वफ़ाओं के बदले वफ़ा चाहता हूँ
सभी की तरह मैं ये क्या चाहता हूँ

दिवानों का मुझ पर असर हो गया है
ख़ता तो नहीं की सज़ा चाहता हूँ

ख़ुदा ही सही पर हटो सामने से
मैं थोड़ी सी ताज़ा हवा चाहता हूँ

वही बस वही बस वही चाहिए बस
नहीं कुछ भी उसके सिवा चाहता हूँ

यहाँ है, वहाँ है, कहाँ है मुहब्बत
बताओ मैं उसका पता चाहता हूँ

वो कैसा था ये जानने के लिए ही
वो कैसा है ये जानना चाहता हूँ

ज़माने से ये दिल तुझे ढूँढता था
तुझी से मैं अब फ़ासला चाहता हूँ

समन्दर से कह दो कि दे दे इज़ाज़त
नदी में यहीं डूबना चाहता हूँ

भला चाहता था सभी का मैं पहले
मगर अब मैं सब का बुरा चाहता हूँ

नहीं देखनी है मुझे मेरी सूरत
मैं हर आइना तोड़ना चाहता हूँ

जो चाहूँ तो यूँ नोंच लूँ तेरा चेहरा
तमाशा मगर देखना चाहता हूँ

ले पत्थर उठा मेरा सर फोड़ दे तू
यही है दवा ये दवा चाहता हूँ

मेरी ही तरह वो जले और तड़पे
ख़ुदा के लिए भी ख़ुदा चाहता हूँ

बहुत थी ये ख़्वाहिश कभी कोई पूछे
किसी ने न पूछा कि क्या चाहता हूँ

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1230

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on September 16, 2017 at 7:53pm

आ. पंकजोम जी, इस प्रशंसा के लिए दिल से शुक्रिया. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on September 16, 2017 at 7:52pm

आ. आशुतोष जी, आपका हृदय से आभार. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on September 16, 2017 at 7:51pm

आ. कल्पना मैम, जानकर बेहद ख़ुशी हुई कि कुछ अशआर आपको पसन्द आये. लम्बी ग़ज़ल के सन्दर्भ में मैं आ. समर सर की बात से सहमत हूँ. निश्चित ही मंच पर उनकी उपस्थिति हम सभी के लिए गर्व की बात है. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on September 16, 2017 at 7:48pm

आ. नीरज जी, ग़ज़ल को पसन्द करने और मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार. मैं इस बात के लिए आपका ज़्यादा आभारी हूँ कि आपने यह भी बताया कि कौन सा शेर आपको नहीं पसन्द आया. ऐसी ही प्रतिक्रिया की मैं आपसे (और अन्य साथियों से भी) भविष्य में भी उम्मीद करता हूँ. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on September 16, 2017 at 7:41pm

आ. सलीम जी, अगली बार पूरी कोशिश करूँगा कि आपको निराश न करूँ. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on September 16, 2017 at 7:40pm

आ. गुरप्रीत जी, आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी का हृदय से आभारी हूँ. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on September 16, 2017 at 7:40pm

आ. मोहित जी, ग़ज़ल में आपकी शिरकत और प्रतिक्रिया का बहुत-बहुत आभार. मुझे लगता है कि "ताज़ा हवा" का प्रयोग सही है. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on September 16, 2017 at 7:38pm

आ. अफरोज़ जी, हौसला अफ़ज़ाई का बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on September 16, 2017 at 7:36pm

आ. समर कबीर सर, सादर आदाब. मेरी ग़ज़ल पर इतना वक़्त दे कर हौसला बढ़ाने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया. इस ग़ज़ल से सम्बन्धित आपने जो प्रश्न उठाये हैं उनके सन्दर्भ में मैं अपनी बात निम्नवत रखता हूँ. 

वफ़ाओं के बदले वफ़ा चाहता हूँ

सभी की तरह मैं ये क्या चाहता हूँ

आपने "सभी" के सन्दर्भ में जो प्रश्न उठाया है वह बहुत बड़ा ज्ञानमीमांसीय प्रश्न है. यह प्रश्न "सामान्य सत्य" के अस्तित्त्व-अनस्तित्त्व का है. एक प्रचलित मान्यता के अनुसार "सामान्य सत्य" जैसी कोई चीज नहीं होती. सभी सत्य "सापेक्ष सत्य" होते हैं. अब यदि यह मान्यता सही है तो हम किसी भी परिस्थिति में "सभी" का प्रयोग सामान्य सत्य को प्रदर्शित करने के लिए नहीं कर सकते जैसे "सभी मनुष्य मरणशील हैं." कविता के क्षेत्र में यह परिस्थिति और भी गम्भीर हो जाती है. ऐसी स्थिति में हम "इश्क़... इक आग का दरिया है" जैसा सामान्यीकरण नहीं कर सकते क्योंकि इश्क़ सभी के लिए आग का दरिया नहीं हो सकता. किसी के लिए यह मीठे पानी की झील भी हो सकती है. तब? इस स्थिति से बचने का एक मार्ग संवेगवादी दार्शनिकों ने सुझाया है जिनके अनुसार नीतिशास्त्रीय कथन किसी सत्य को उद्घाटित नहीं करते अपितु वक्ता के मनोभावों को व्यक्त करते हैं. संवेगवादियों की यह बात काव्यात्मक कथनों के ऊपर भी लागू होती है. अब, इश्क़ चाहे आग का दरिया हो या मीठे पानी की झील, यह इश्क़ के सन्दर्भ में किसी सामान्य सत्य को उद्घाटित न कर के वक्ता के मनोभावों को प्रदर्शित करता है. यही बात इस पर भी लागू होती है कि "सभी लोग वफ़ाओं के बदले वफ़ा चाहते हैं."

दूसरी बात, यदि हम "सभी" शब्द के सामान्य प्रयोग को देखें तो यह अक्सर "आमतौर" या "अधिकांश" के पर्यायवाची के रूप में प्रयोग होता है. यदि इन दोनों बातों को ध्यान में रखा जाए तो मुझे नहीं लगता कि "सभी" शब्द का प्रयोग यहाँ पर अनुचित है. 

दिवानों का मुझ पर असर हो गया है

ख़ता तो नहीं की सज़ा चाहता हूँ

ऊला मिसरे में 'दिवानों का मुझ पर' बात दमदार क्यों नहीं हुई, यह मुझे स्पष्ट नहीं हो सका. यदि आप स्पष्ट कर देंगे तो अति कृपा होगी.

ख़ुदा ही सही पर हटो सामने से

मैं थोड़ी सी ताज़ा हवा चाहता हूँ

यहाँ "ख़ुदा" शब्द का प्रयोग मैंने प्रभावशाली व्यक्ति के लिए किया है भले ही वह शासक क्यों न हो. यह शेर सिर्फ इतना ही कहता है कि मुझे इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि आप कितने प्रभावशाली हैं. 

वो कैसा था ये जानने के लिए ही

वो कैसा है ये जानना चाहता हूँ

आपकी बात बिलकुल सही है. इस शेर में मैंने शब्दों का हेर-फेर किया है. मुझे लगा कि शायद यह लोगों को पसन्द आए. आपने कहा है तो मैं यह शेर हटा रहा हूँ. वैसे यह शेर मैंने आख़िरी वक़्त में कहा था. इस "जानना" क़ाफ़िये को लेकर मैंने एक शेर कहा था लेकिन अन्तिम वक़्त में उसे हटा दिया था. वह शेर यह है :

किसी को ख़बर हो तो मुझको बताए

हूँ किस हाल में, जानना चाहता हूँ

इस शेर पर आपकी प्रतिक्रिया जानकार मुझे बेहद ख़ुशी होगी.

समन्दर से कह दो कि दे दे इज़ाज़त
नदी में यहीं डूबना चाहता हूँ

यहाँ "समन्दर" का अर्थ मैंने "मंजिल" से लिया है और "नदी" का "रास्ते" से. यदि यह मंजिल आपकी प्रेयसी हो और उसे पाने के लिए आपको जो रास्ता तय करना पड़े उसे आप न तय कर पायें तो आपको ऐसा लगता है कि आप उसे मुँह दिखाने के क़ाबिल नहीं बचे हैं. आपका मर जाना ही बेहतर है. यह शेर यही कहना चाहता है. इज़ाज़त की बात मैंने चाहत को प्रदर्शित करने के लिए कही थी. इज़ाज़त मिल जाएगी तो वह ख़ुदकुशी कर लेगा नहीं तो घिसट-घिसट के मरेगा. हाँ, "यहीं" शब्द भर्ती का है पर मुझे कोई बेहतर तरीका सूझ नहीं रहा था. एक मिसरा मस्तिष्क में यह आया था, "नदी में ही मैं डूबना चाहता हूँ." यदि आप कोई बेहतर विकल्प दे सकें तो बहुत ख़ुशी होगी.

जो चाहूँ तो यूँ नोंच लूँ तेरा चेहरा

तमाशा मगर देखना चाहता हूँ

यहाँ पर चेहरे का अर्थ स्वाभाविक चेहरे के ऊपर लगाये जाने वाले बनावटी चेहरे से है. उसी को नोंचने की बात की जा रही है जिसे सब नहीं देख पा रहे हैं. 

ले पत्थर उठा मेरा सर फोड़ दे तू

यही है दवा ये दवा चाहता हूँ

यह झल्लाहट भरा शेर है. हज़ार बार इशारों से बताने के बाद भी जब आपकी दवा (महबूब) ही आपसे यह बार-बार पूछे कि आपकी दवा क्या है तो जो मनोभाव उत्पन्न होते हैं, उन्हीं को मैंने इस शेर में कहने की कोशिश की है.

मेरी ही तरह वो जले और तड़पे

ख़ुदा के लिए भी ख़ुदा चाहता हूँ

ख़ुदा अकेला है. वह क्या जाने कि किसी के इश्क़ में पड़ने पर कैसी जलन और तकलीफ़ से गुज़रना होता है. यदि उसे भी कोई ख़ुदा मिल जाए तो शायद उसे मेरी पीड़ा का अन्दाज़ा हो. इस शेर में "ख़ुदा" का एक और अर्थ भी निकलता है लेकिन मुझे लगता है कि बात को स्पष्ट करने के लिए यह अर्थ पर्याप्त है.

आदरणीय सर, आपकी बात सही है कि ग़ज़ल में सात (या आठ) शेर ही होने चाहिए और अगर इससे ज़्यादा शेर कहने हों तो उनका हक़ पूरी तरह अदा होना चाहिए. मैं अगली बार इस बात का पूरा ध्यान रखूँगा. इस बात को जान कर बेहद ख़ुशी हुई कि आपने इस ज़मीन में लगभग पचपन अशआर कहे हैं. यदि आप अपने ब्लॉग का पता दे दें मुझे उन्हें पढ़कर बेहद ख़ुशी होगी और उनसे बहुत कुछ सीखने को भी मिलेगा. 

एक बार पुनः, आपने अपना कीमती वक़्त निकाल मेरी ग़ज़ल को इतना समय दिया, इसके लिए मैं हृदय से आभारी हूँ. कृपया इसी तरह स्नेह बनाये रखें. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 16, 2017 at 3:09pm
इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
8 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
14 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
14 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service