For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - शर्मिन्दा कर रहा है कोई " सलीम रज़ा

.221 2121 1221 212

..................................

अपने हसीन रुख़ से हटा कर निक़ाब को,  

शर्मिन्दा  कर  रहा  है  कोई माहताब को 

.

कोई  गुनाहगार   या   परहेज़गार    हो,

रखता है रब सभी केअमल के हिसाब को 

.

उनकी निगाहे नाज़ ने मदहोश कर दिया,

मैं  ने  छुआ  नहीं है क़सम से शराब को 

.

दिल चाहता है उनको दुआ से नावाज़ दूँ,

जब देखता हूँ बाग में खिलते गुलाब को 

.

ये ज़िन्दगी तिलिस्म के जैसी है दोस्तो,

क्या देखते नहीं हो बिखरते हुबाब को 

.

जुगनू मुक़ाबले पे न आ जाएं अब कहीं,

इस बात ने परेशां किया आफ़ताब को 

.

इन्सान  बन  गया है "रज़ा" आदमी से वह,

दिलसे पढ़ा है जिसने ख़ुदा की किताब को 

.........................................

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 868

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SALIM RAZA REWA on September 17, 2017 at 11:32pm
आ. राम बली जी,
ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया,
Comment by रामबली गुप्ता on September 17, 2017 at 10:58pm
ज़नाब सलीम रजा जी सभी शैर अच्छे लगे। बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है। दिल से बधाई स्वीकारें। सादर
Comment by SALIM RAZA REWA on September 16, 2017 at 6:58pm
बृजेश भाई साहब,
आपकी मुहब्बत के लिए शुक्रिया,
Comment by SALIM RAZA REWA on September 16, 2017 at 6:57pm
आदरणीय गिरिराज जी,
आप हमारे बड़े भाई है,
इसलिए आप छमा लिख कर अपने छोटे भाई को शर्मिंदा न करें, हमने तो बस आपका ध्यान केंद्रित किया था,
हमें आपके प्यार और आशीर्वाद की हमेशा जरूरत है,
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 16, 2017 at 3:12pm
आदरणीय सलीम जी बड़ी ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है..हार्दिक बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 16, 2017 at 11:21am

आ. सलीम भाई मै ने बदलाव को पढ़ लिया था पर , आ. समर भाई जी सलाह पढ़ के आदतन ये जुम्ला लिख ही जाता है .. क्षमा कीजियेगा ।

Comment by SALIM RAZA REWA on September 16, 2017 at 11:06am
आ. गिरिराज जी,
ग़ज़ल पसंद करने के लिए शुक्रिया.. साहब मैंने जरूरी बदलाव पहले ही कर लिया है, शायद आप उन मिसरों को ध्यान से न पढ़ा होगा,

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 16, 2017 at 10:44am

आदरणीय सल्लीम भाई , बेहतरीन ग़ज़ल कही है ... तहे दिल से मुबारक बाद कुबूल कीजिये । आ. समर भाई जी की बातों पर गौर कीजियेगा ।

Comment by SALIM RAZA REWA on September 16, 2017 at 8:58am
आप सब की मुहब्बातो के लिए शुक़गुज़ार हूँ.
Comment by SALIM RAZA REWA on September 15, 2017 at 2:48pm
आ. आशुतोष जी आपकी मुहब्बत के लिए शुक्रिया,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया

पलभर में धनवान हों, लगी हुई यह दौड़ ।युवा मकड़ के जाल में, घुसें समझ कर सौड़ ।घुसें समझ कर सौड़ ,…See More
18 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"बारिश का भय त्याग, साथ प्रियतम के जाओ। वाहन का सुख छोड़, एक छतरी में आओ॥//..बहुत सुन्दर..हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्र पर आपके सभी छंद बहुत मोहक और चित्रानुरूप हैॅ। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेश कल्याण जी।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service