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ग़ज़ल - जो मुद्दत से मुझे पहचानता है

1222 1222 122
मेरी पहचान को खारिज़ किया है ।
जो मुद्दत से मुझे पहचानता है ।।

खुशामद का हुनर बख्सा है रब ने ।
खुशामद से वो आगे बढ़ रहा है ।।

जतन कितना करोगे आप साहब ।
ये भ्रष्टाचार अब तक फल रहा है ।।

यकीं होता नही जिसको खुदा पर ।
वही इंसां खुदा से माँगता है ।।

उन्हें ही डस रहें हैं सांप अक्सर ।
जो सापों को घरों में पालता है ।।

गया मगरिब में देखो आज सूरज ।
पता वह चाँद का भी ढूढता है ।।

मदारी के लिए जो है कमाऊ। वही बन्दर हमेशा नाचता है ।।

गरीबी में हुआ जीना है मुश्किल ।
कोई बाबा को बेटी बेचता है ।।

नई सूरत को अक्सर ढूढते हैं। यही इंसानियत का फलसफा है ।।

है उनका दूर ही रहना मुनासिब । कहाँ उन से हमारा वास्ता है ।।

न जाने क्या हुआ है आदमी को । पराये माल को ही देखता है ।।

--- नावीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by पंकजोम " प्रेम " on September 15, 2017 at 2:58pm
वाह भाई जी वाह बेहतरीन ग़ज़ल , ख़ूब

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 15, 2017 at 10:40am

आदरनीय नवीन भाई < अच्छी गज़ल कही है हार्दिक बधाइयाँ । बाक़ी सब कुछ आ. समर भाई कह ही चुके हैं ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 14, 2017 at 10:49pm

सादर धन्यवाद् आदरणीय , एक निवेदन है इस ग़ज़ल को हो सके तो दुबारा से पंक्तिबद्ध लिखें | सादर |

Comment by Naveen Mani Tripathi on September 14, 2017 at 7:44pm
आदरणीया कल्पना भट्ट जी इस पंक्ति में मेरा दर्शन है जिसे आप आंख बंद करके महसूस कर सकती हैं । जो सर्व शक्तिमान है जो सबका पालन हार सर्व ज्ञाता है उसे मेरा हर दुःख दर्द पता है । यदि हम उससे अपनी समस्या कहते हैं या कुछ मांगते हैं तो यह मेरी नादानी ही होगी । खुदा से मांगने का अर्थ है कि कहीं न् कहीं उसके मर्मज्ञता की उपेक्षा कर रहे हैं । अरे जो सर्व ज्ञाता है उसे हम अपना दुख बताएं तब वो समझेगा । इसका मतलब हमे ईश्वरीय सत्ता पर यकीन ही नहीं है ।
Comment by Niraj Kumar on September 14, 2017 at 4:47pm

आदरणीय नवीन जी, हार्दिक आभार. आप की इच्छा का सम्मान आवश्य करता मगर अफ़सोस कि मैं शायर नहीं हूँ.

सादर 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 14, 2017 at 4:22pm

यकीं होता नही जिसको खुदा पर ।
वही इंसां खुदा से माँगता है ।।

आदरणीय ग़ज़ल को अभी समझ ने कोशिश कर रहीं हूँ , यहाँ आप क्या कहना चाह रहे है नहीं समझ पायी हूँ कृपया बताने का कष्ट करें ? उम्मीद है आप बुरा न मानेंगे सर |

Comment by Naveen Mani Tripathi on September 13, 2017 at 8:11pm
आ0 नीरज कुमार भाई सुना है आप कुशल आलोचक हैं । आप मेरी ग़ज़ल तक आये इसके लिए धन्यवाद । मेरी इच्छा है आप भी अपनी दो चार ग़ज़लें पोस्ट करें जिससे मैं भी कुछ सीखूँ ।
Comment by Niraj Kumar on September 13, 2017 at 5:19pm

आदरणीय नवीन जी,

अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद .

आपके पास वह सब कुछ है जो एक बेहतर ग़ज़लकार के लिए जरूरी है. जरूरत है तो थोड़े से काव्य संयम की. एक बेहतर ग़ज़लकार अपनी ग़ज़ल का बेहतर सम्पादक भी होता है. ग़ज़ल में कौन सा शब्द, पंक्ति, या शेर रखा जाय या न रखा जाय इसका विवेक बहुत आवश्यक है. 

सादर  

Comment by Afroz 'sahr' on September 13, 2017 at 10:43am
आदरणीय नवीन जी आपने समर कबीर साहब के बारे में शत प्रतिशत सही कहा है! और आपके बक़िया दुआइया जुमलों पर 'आमीन ' कहता हूँ!
Comment by Naveen Mani Tripathi on September 13, 2017 at 9:25am
भाई अफ़रोज़ सहर साहब कबीर सर का मैं मुरीद हैहू । ऐसे उस्ताद आज दुर्लभ हैं । कितना भी सोच के लिखूँ कबीर साहब की दृष्टि से गलती कभी बच नहीं पाती । कबीर साहब को खुदा लम्बी उम्र दे जिससे साहित्य की सेवा हो सके ।

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