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ग़ज़ल -- कीचड़ के आस पास में देखा कवँल गया

*221 2121 1221 212*

सारा चमन गुलाब था अश्कों में ढल गया ।
था बारिशों का दौर समंदर मचल गया ।।

रुसवाईयां तमाम थीं दिल में मलाल थे ।
देखा जो हुस्न आपका पत्थर पिघल गया ।।

खुशबू बनी हुई है अभी तक दयार में ।
महबूब मेरा ख्वाब में आकर टहल गया ।।

कैसा नशा था इश्क़ में मदहोशियों के बीच ।
जो भी थे दफ़्न राज़ वो पल में उगल गया।।

जब मैं जला तो लोग बहुत जश्न में मिले ।
जैसे किसी नसीब का सिक्का उछल गया ।।

कहता था है ये आग का दरिया न इश्क कर।
सुनता हूँ चैन भी तेरा है आजकल गया।।

कच्ची सी बस्तियोंं में हैं सस्ते जवाहरात ।
कीचड़ के आस पास में देखा कंवल गया ।।

महफ़िलमें क्या नज़र मिली जोआपसे हुजूर।
मुद्दत के बाद दिल भी हमारा बहल गया।।

उसने कहा था साथ निभाएंगे उम्र भर ।
इंसान चन्द रोज में कितना बदल गया ।।

मिलती कहाँ दुआ है मुहब्बत के वास्ते ।
आई कभी खुशी तो दिवाला निकल गया ।।

वो जिस्म था कि आग यही सोचते रहे ।
जब भी गया करीब लहू तक उबल गया ।।

,--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित मौलिक

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 25, 2017 at 4:46pm

बढ़िया ग़ज़ल है नवीन भाई जी हार्दिक बधाई सादर 

Comment by Samar kabeer on September 25, 2017 at 2:36pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

तीसरे शैर के ऊला में 'ख़ुशबू बनी'को "ख़ुशबू बसी" कर लें ।

पांचवें शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है ।

सातवें शैर के ऊला मिसरे में 'सस्ते' को 'मंहगे' कर लें ।

'महफ़िल में क्या नज़र मिली जो आपसे हुज़ूर'
इस मिसरे में रवानी नहीं है, यूँ कर लें तो रवानी में आजायेगा :-
'महफ़िल में क्या निगाह मिली आपसे हुज़ूर'
Comment by नन्दकिशोर दुबे on September 24, 2017 at 3:31pm
बहुत ही कमाल की गजल है । आनन्द आ गया । एक एक शेर लाजवाब । चमत्कार दर चमत्कार भाई वाह वाह !
Comment by MUKESH SRIVASTAVA on September 23, 2017 at 2:26pm

waah mitra 

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