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आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी
खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई।
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी साहब, सुन्दर रचना के लिए बधाई.
बेकारियों के दौर गुजरा हूँ इस कदर ।
घोड़ा ही ढूढता रहा ताउम्र घास में ।।
खुशबू सी आ रही है हवाओं से बेहिसाब ।
शायद बहार होगी कहीं आस पास में ।।
बहुत खूब, वाह वाह. सादर
आदरणीय नवीन जी,
ग़ज़ल में समकालीन भावबोध की प्रभावी अभिव्यक्ति के लिए दाद के साथ मुबारकबाद.
'बेकारियों के दौर गुजरा हूँ इस कदर' - इसमें एक 'से' छूट गया है
'निकले शरीफ़ लोग बहुत बे लिबास में' - इसमें 'बे लिबास में' ' व्याकरणिक रूप से ठीक नहीं है. देख लीजियेगा.
सादर
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