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आ. राम बली भाई , बेहतरीन गज़ल कही है , शेर दर शेर मुबारक बाद पेश है , स्वीकार करें ।
आदरणीय रामबली जी,
उर्दू के उस्ताद शायरों की तरफ न भी जाय तो हिंदी में दुष्यंत के यहाँ भी ऐसी ग़ज़लों की कोई कमी नहीं.
सादर
आदरणीय रामबली जी,
आच्छी कोशिश है. लेकिन अभी इसमें ग़ज़ल की रूह नहीं है. ग़ज़ल सीधे उपदेश नहीं देती. ग़ज़ल बात को इशारों में कहने की कला है.
सादर
गलतियाँ किससे नही होतीं भला संसार में?
है मगर शुभ आचरण निज भूल के स्वीकार में।
शून्य में सामान्यतः तो कुछ नही का बोध पर,
है यहाँ क्या शेष छूटा शून्य के विस्तार में?
आधुनिकता के दुशासन ने किया ऐसे हरण,
द्रौपदी निर्वस्त्र है खुद कलियुगी अवतार में।
अनुपम,अद्भुत,अप्रतिम और सारगर्भित इस बेहतरीन ग़ज़ल की पेशकश पर आपको कोटि कोटि बधाई आदरणीय रामबली गुप्ता जी।
आदरणीय रामबली जी सार्थक संदेशों को समाहित किये वर्तमान परिदृश्यों को चित्रित करती हुयी शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
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