फाइलातुन -मफ़ाइलुन -फेलुन
दिल की हसरत यही है मुद्दत से |
कोई देखे हमें महब्बत से |
नामे उल्फ़त से जो नहीं वाक़िफ़
देखता हूँ मैं उसको हसरत से |
सब्र का फल तो खा के देख ज़रा
क्यूँ है मायूस उसकी रहमत से |
जिस ने देखा उन्हें यही बोला
उनको रब ने बनाया फ़ुर्सत से |
उसके हाथों में आइना दे दो
बाज़ आए नहीं जो गीबत से |
देखिए तो करम अज़ीज़ों का
वो हैं बे ज़ार मेरी सूरत से |
तू ने तस्दीक़ बोला है सच ही
यूँ नहीं तू घिरा मुसीबत से |
( मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
जनाब दिनेश कुमार साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
भाई वाह ! अदरणीय तस्दीक साहब की ये ग़ज़ल चुपचाप चलती हुई कितनी दूरी तय कर रही है ! दाद स्वीकार कीजिए आदरणीय
शुभ-शुभ
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