(फाइलातुन -फइलातुन -फइलातुन -फइलुन /फेलुन)
आ गया हूँ वहाँ जिस जा से मैं जा भी न सकूँ |
मा सिवा उनके कहीं दिल को लगा भी न सकूँ |
इस तरह बैठे हैं वो फेर के आँखें मुझ से
उनके सोए हुए जज़्बात जगा भी न सकूँ |
मेरी महफ़िल में किसी ग़ैर को लाने वाले
दिल से मजबूर हूँ मैं तुझको जला भी न सकूँ |
फितरते तर्के महब्बत है तेरी यार मगर
तेरी इस राय को मैं अपना बना भी न सकूँ |
इतना मजबूर भी मुझको न खुदा कर देना
अपने घर बार को इज़्ज़त से चला भी न सकूँ |
अश्क जो हैं मेरी आँखों में दिए दिलबर ने
मैं अगर चाहूं गिराना तो गिरा भी न सकूँ |
वो सितमगर सही तस्दीक़ मगर है दिलबर
उस की फ़ितरत मैं ज़माने को बता भी न सकूँ |
जिस जा -----जिस जगह
( मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
जनाब राम बली साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
मुहतरम जनाब गिरिराज साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय तस्दीक भाई , बहुत बऍढ़िया गज़ल कही है , शेर दर शेर मुबारकबाद कुबूल कीजिये ।
जनाब आशुतोष साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
अच्छी ग़ज़ल है आ. तस्दीक़ जी. ये शेर विशेष रूप से पसन्द आये :
इतना मजबूर भी मुझको न खुदा कर देना
अपने घर बार को इज़्ज़त से चला भी न सकूँ |
वो सितमगर सही तस्दीक़ मगर है दिलबर
उस की फ़ितरत मैं ज़माने को बता भी न सकूँ |
हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
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