बहर-ए-रमल मुसम्मिन मक्सूर व मह्जूफ़
2122 2122 2122 2121
किसके चेह्रे पर लिखा है कौन दुश्मन यार कौन
क्या पता है आड में गुल की छुपा है ख़ार कौन
हक़ है किसका सिर पे पहने है मगर दस्तार कौन
चाँद निकला छत पे किसकी कर रहा दीदार कौन
मतलबी हैं आज रिश्ते खो गया है एतबार
इस जहां में दिल से सच्चा आज करता प्यार कौन
मर गया है मुफ़्लिसी में भूख से देखो अनाथ
सब ही खाते थे तरस लेकिन उठाता भार कौन
पेट भरने के लिए जो कुछ मिला उसका नसीब
फर्क उसको क्या पड़ेगा जानकर सरकार कौन
राह का रोड़ा बना वो झूठी रस्मों का पहाड़
चाहते सब तोड़ना लेकिन करेगा वार कौन
रेप मर्डर प्यार धोखा बस यही खबरें तमाम
बिन मसालों के यहाँ पर बेचता अखबार कौन
-----मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
प्रिय कल्पना भट्ट जी ,ग़ज़ल पर शिरकत और आपकी सुखन नवाजी का तहे दिल से शुक्रिया |
हक़ है किसका सिर पे पहने है मगर दस्तार कौन
चाँद निकला छत पे किसकी कर रहा दीदार कौन
मतलबी हैं आज रिश्ते खो गया है एतबार
इस जहां में दिल से सच्चा आज करता प्यार कौन बहुत खूब दी | हार्दिक बधाई इस ग़ज़ल के लिए
आ० लक्ष्मण धामी भैया ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया|
आद० सुरेन्द्र कुशक्षत्रप भैया ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया| आपने सही कहा है |
आद० उस्मानी जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया| आपने सही कहा है |
आद० राज नवाद्वी जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया |
आद० समर भाई जी,आपकी दूरबीन से बहुत सी ऐसी महीन बातें पकड़ी जाती हैं जिनका हमें भान भी नहीं होता खार व् गुल वाले मिसरे में आपकी बात सोचो तो एक दम दुरस्त है इस गलती को मैं समझ ही नहीं पाई |इसको ठीक कर लूँगी
फ़र्क़ उसको क्या पड़ेगा है यहाँ सरकार कौन'----बेहतर विकल्प समझाया
आद० भाई जी आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत शुक्रिया .मिसरे तो मैं सुधार ही लूँगी
आद० मोहम्मद आरिफ जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ आपका दिल से शुक्रिया |
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