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" कौन हो तुम ?"
" जन्म से मुस्लिम , मन से सच्चा हिन्दुस्तानी , तन से अधनंगा और पेट से भूखा हूँ ।"
"लेकिन आप यह सब क्यों पूछ रही हैं ?आप कौन हैं ?"
" हा! हा! हा ! हा ! हा !" ज़ोर का अट्टहास किया और बोली-" मुझे दंगों की दुनिया की बेताज मलिका "साम्प्रदायिकता" कहते हैं । " उसने बस इतना ही कहा और एकदम पिस्टल निकालकर दो-तीन गोलियाँ उसकी कनपटी में दाग दी और फरार हो गई ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment by Mohammed Arif on October 18, 2017 at 10:50am
आपकी सटीक और ईमानदाराना टिप्पणी से लेखन को संबल और सार्थकता मिली आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी । बहुत-बहुत आभार ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 18, 2017 at 10:48am
ताज़ा हालात पर ज्वलंत मुद्दों पर आपकी यह लघुकथा मंच पर फीचर्ड होने पर, फीचर लघुकथा के रूप में चुने जाने पर तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहब।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 18, 2017 at 10:40am
लेखनी के संदेश-वाहक-तीर अभीष्ट निशानों पर। सधी हुई, कसी हुई सार्थक सारगर्भित सृजन के लिए सादर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ साहब।

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