सभी पंक्तियों का मात्रा भार
2122 2122 2122 212 के क्रम में
गीत क्रंदन कर उठे हैं
भावना के द्वार पर
वेदना में याचना के
शब्द गीले हो गए
यातना के काफिलों से
पथ सजीले हो गए
आँसुओं की बेबसी में
दर्द की मनुहार पर
गीत क्रंदन कर उठे हैं
भावना के द्वार पर
आदमी में आदमी सा
क्या बचा है सोचिये?
पीर क्या है मुफलिसों की?
ये कभी तो पूछिये
हो रही फाकाकशी हर
तीज पर त्यौहार पर
गीत क्रंदन कर उठे हैं
भावना के द्वार पर
दीप जलते हैं कहीं पर
दिल कहीं जलते रहे
पतझरों की गोद में भी
फूल थे पलते रहे
अब कली सहमी हुई है
अश्क़ से शृंगार कर
गीत क्रंदन कर उठे हैं
भावना के द्वार पर
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Comment
आदरणीय बृजेश जी,
दीपोत्सव पर इस सुन्दर गीत प्रस्तुति के बधाईयाँ और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये.
सादर
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