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'न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाए'
//बताते हैं कि ये निहायत खूबसूरत शैर एक तरही मुशायरे की ग़ज़ल से ही है. और इसी शैर पर गिरह लगाई गई है.ये सूचना चाहे सही हो या न हो,//
जनाब सौरभ पाण्डेय साहिब आदाब,ये सूचना सो प्रतिशत सही है,ये मिसरा'न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम ही जाए'साहिब-ए-दीवान शाइर 'नज़्मी'साहिब का है जो उनके दीवान में मौजूद है,ये उनके मक़्ते का सानी मिसरा है, उनका मक़्ता मुलाहिज़ा फरमाएं :-
"कफ़न दाबे बग़ल में इसलिये फिरता हूँ ऐ 'नज़्मी'
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम ही जाए'
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