मुझे संसार में आने दो .....
ठहरो !
पहले मैं अपनी बेनामी को नाम दे दूँ
गर्भ के रिश्ते को
दुनियावी अंजाम दे दूँ
जानती हूँ
जब
तुम मुझे जान जाओगे
बिना समय नष्ट किये
मुझे गर्भ से ही
कहीं दूर ले जाओगे
कूड़ेदान
कंटीली झाड़ियों
या फिर किसी नदी,कुऍं में
या किसी बड़े से पत्थर के नीचे
दूर रेगिस्तान में
फेंक आओगे
जहां से तुम्हें
मेरी चीख भी सुनायी न देगी
इसके बाद
तुम चैन की नींद सो जाओगे
सच बताना
क्या चैन से सो पाओगे
क्या इस जघन्य अपराध बोध से
मुक्त हो पाओगे
शायद कभी नहीं
मेरा अस्तित्व
मिट कर भी
तुम्हारे हृदय की कंदराओं में
तुम्हारे अस्तित्व तक
तुममें
जीवित रहेगा
हो सकता है
दुनिया के नज़र में
बेनामी का कफ़न ओढ़े
मैं शायद
तुम्हारे नाम के बन्धन से
मुक्त हो
मिट जाऊं
पर
याद रखना
जब कभी तुम
मेरी सृजन धरा
मेरी माँ से
आँख मिलाओगे
सच कहती हूँ
उसकी आँखों में
दूर खड़ी
इक बेटी को
तड़पता पाओगे
ज़िदगी के मोड़ पर
जब कभी
अकेले रह जाओगे
बेनामी के अन्धकार में फेंके
इस बेटी नाम के
रिश्ते के लिए
बहुत पछताओगे
चलो
सब से छुपा लोगे
मुझे बेनाम बना लोगे
मगर मैं तो तुम्हारे रिश्ते से बंधी
तुम्हारी बेटी हूँ
तुम्हारी साँसों
तुम्हारे खून
तुम्हारी आँखों में कहीं लेटी हूँ
तुम करो तो करो
मैं तुम्हें बेनाम नहीं कर सकती
बड़ी मुशिकल होगी
जब मैं इक लावा बन
तुम्हारी आँख से बह निकलूंगी
तुम्हारे हाथ पर गिरूँगी
तुम्हारी उंगली पकड़ूँगी
और मिट्टी में गिर पड़ूँगी
तुम्हारे हाथ कुछ भी न आएगा
गीली मिट्टी से हाथ सन जाएगा
एक बेनाम रिश्ता
कहकहे लगाएगा
इसलिए ठहरो
मुझे कोख से रिश्ता बनाने दो
मुझे संसार में आने दो
मुझे अपनी बेटी कहलाने दो
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार। मैं आपकी बात से शत प्रतिशत सहमत हूँ और इस बाबत सजग भी रहता हूँ पर कभी कभी भावों का प्रवाह ऐसा बहता है कि मैं रचना की सीमा से बाहर हो जाता हूँ। बहरहाल भविष्य में आपकी सलाह को अमल में लाने का पूरा प्रयास करूंगा। आपके इस सुझाव का दिल से आभार।
आदरणीय डॉ छोटेलाल सिंह जी सृजन के भावों की गहनता को आत्मीय सम्मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय सुशील जी दिल को छू लेने वाली अत्यंत ही मार्मिक रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online