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मात-पिता पर स्वतंत्र दोहे :

मात-पिता पर स्वतंत्र दोहे :

मात-पिता का जो करें, सच्चे मन से मान। 
उनके जीवन का करें , ईश सदा उत्थान !!1!!

जीवन में मिलती नहीं ,मात-पिता सी छाँव। 
सुधा समझ पी लीजिये , धो कर उनके पाँव!!2!!

मात-पिता का प्यार तो,होता है अनमोल। 
उनकी ममता का कभी, नहीं लगाना मोल !!3!!

बच्चों में बसते  सदा, मात पिता के प्राण। 
बिन उनके आशीष के, कभी न हो कल्याण!!4!!

सुशील सरना

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Comment by Sushil Sarna on November 7, 2017 at 9:14pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... सृजन के भावों को आत्मीय मान देने एवं अनमोल सुझाव का दिल से आभार।

Comment by Samar kabeer on November 5, 2017 at 8:21pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत उम्दा,शिल्प,प्रवाह सब बढ़िया है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
ये स्वतंत्र दोहे क्या है ?
तीसरे दोहे में 'अनमोल'के साथ 'मोल'की तुकान्तता मुझे सही नहीं लगी ।
Comment by Sushil Sarna on November 3, 2017 at 4:31pm

आदणीय अजय कुमार शर्मा जी सृजन के भावों को सहमति देती आपकी प्रशंसा का दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on November 3, 2017 at 4:31pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी सृजन के भावों को अपनी आत्मीय प्रशंसा से अलंकृत करने का दिल से आभार। इंगित टंकण त्रुटि को मैं अभी दुरुस्त कर प्रस्तुति को पुनः प्रेषित करता हूँ। इस हेतु आपका हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on November 3, 2017 at 4:30pm

आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज जी सृजन की आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2017 at 9:50am

सही शिल्प सही शब्द उत्तम भाव ...बहुत बढिया दोहे लिखे हैं आदरणीय सरना जी हार्दिक बधाई 

बस्ते को बसते कर  लीजिये 

Comment by Ajay Kumar Sharma on November 2, 2017 at 9:49pm
अक्षरश: सत्य..
सुन्दर रचना...
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 2, 2017 at 9:44pm
उत्तम भावों से ओतप्रोत रचना..सादर
Comment by Sushil Sarna on November 2, 2017 at 8:02pm

आदरणीय मो.आरिफ साहिब, आदाब ..... प्रस्तुति की आत्मीय सराहना हेतु आपका दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on November 2, 2017 at 8:02pm

आदरणीय मोहित मिश्रा जी सृजन को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।

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