उनकी यादों की ....
ये
कैसे उजाले हैं
रात
कब की गुजर चुकी
दूर तलक
आँखों की
स्याही बिखेरते
तूफ़ां से भरे
आरिज़ों पर ठहरे
ये
कैसे नाले हैं
शब् के समर
आँखों में ठहरे हैं
लबों की कफ़स में
कसमसाते
संग तुम्हारे जज़्बातों के
लिपटे
कुछ अल्फ़ाज़
हमारे हैं
हर शिकन
चादर की
करवटों की ज़ुबानी है
जुदा होकर भी
अब तलक
ज़िंदा हैं हम
ख़ुदा कसम
ये
ज़हन में
उनकी यादों की
हम पर
मेहरबानी है
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी सृजन आपकी मधुर प्रशंसा का आभारी है।
सुंदर रचना प्रस्तुति के लिए बधाई श्री सुशील सरना जी
आदरणीय बृजेश जी सृजन आपकी मधुर प्रशंसा का आभारी है।
आदरणीय मो.आरिफ साहिब , आदाब ... सृजन को मन मुदित करती प्रशंसा से अलंकृत करने का दिल से आभार।
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... सृजन के भावों को आत्मीय मान देने एवं अनमोल सुझाव का दिल से आभार।
आदरणीय SALIM RAZA REWA साहिब सृजन के भावों को आत्मीय स्नेह देने का दिल से आभार।
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