For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल,,,,भीगी पलकों पे कई ख़्वाब,,

2122/1122/1122/22/112

अश्क़ आँखों में यूँ बेताब हुआ करते हैं
भीगी पलकों पे कई ख़्वाब हुआ करते हैं।

जिनकी क़ीमत ही नहीं लोगों की नज़रों में कोई
रब की नज़रों में वो सुरख़ाब हुआ करते हैं।

जो भी रखते हैं बुज़ुर्गों की रिवायत का भरम
लोग दुनिया में वो नायाब हुआ करतें हैं।

ख़ुश्क फूलों की तरह मुझको समझने वालों
गुल में ख़ुश्बू के कई बाब हुआ करते हैं।

तुहमतें गैरों पे साज़िश की लगाने वाले
तेरे दुश्मन तेरे एहबाब हुआ करते हैं।

तुझसे मिलने को हूँ बेताब ये है सच लेकिन
आमद ओ रफ़्त के असबाब हूआ करते हैं।

जो भी ठुकराते हैं दावत को रसूलों की सहर
राह ए दरिया में वो ग़रका़ब हुआ करते हैं।

मौलिक/अप्रकाशित

Views: 910

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Afroz 'sahr' on November 9, 2017 at 1:27pm
जनाब तस्दीक़ साहिब ग़ज़ल में शिरकत और सुख़न नवाज़ी का शुक्रिया,,,,,
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 9, 2017 at 1:14pm
जनाब अफ़रोज़ साहिब ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
Comment by Afroz 'sahr' on November 8, 2017 at 10:08pm
आली जनाब समर साहिब आदाहब आपने ग़ज़ल को सराहा मेंरी ख़ुश बख़्ती आपके मशविरे हमेशा ही बहुत मुफ़ीद होते हैं,,,आपकी मुहब्बतें इसी तरह मिलती रहें ,,,
Comment by Samar kabeer on November 8, 2017 at 9:56pm
जनाब अफ़रोज़'सहर'साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'जिनकी क़ीमत ही नहीं लोगों की नज़रों में कोई'
रब की नज़रों में वो सुरख़ाब हुआ करते हैं'
इस शैर में क़ाफ़िया दुरुस्त नहीं है,'सुरख़ाब'एक आबी परिन्दा है, यहाँ 'नायाब'क़ाफ़िया बहुत मुनासिब होगा ।

तीसरे शैर के ऊला मिसरे में आख़री शब्द को "भरम"करलें ।

'तुझसे मिलने को हूँ बेताब है ये सच लेकिन'
इस मिसरे को यूँ कर लें तो रवानी बढ़ जायेगी:-
"तुझसे मिलने को हूँ बेताब ये सच है लेकिन"

'राह-ए-दरया में वो ग़रक़ाब हुआ करते हैं'
इस मिसरे में 'राह-ए-दरया'की तरकीब सही नहीं है,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं :-
'लोग वो दरया में ग़रक़ाब हुआ करते हैं'
Comment by Afroz 'sahr' on November 8, 2017 at 9:18pm
आदरणीय आशीष जी ग़ज़ल में शिरकत और सुख़़न नवाज़ी के लिए शुक्रिया,,,,
Comment by Ashish shrivastava on November 8, 2017 at 9:03pm
बहतरीन ग़ज़ल ।
वाह ! वाह !
Comment by Afroz 'sahr' on November 8, 2017 at 5:34pm
आदरणीय ब्रजेश जी ग़ज़ल में शिरकत और सुख़न नवाज़ी का शुक्रिया,,,,
Comment by Afroz 'sahr' on November 8, 2017 at 4:03pm
आदरणीय अजय तिवारी जी ग़ज़ल को समय देने और हौसला बढा़ने के लिए आपका शुक्रिया,,,
Comment by Afroz 'sahr' on November 8, 2017 at 4:00pm
आदरणीय सलीम रज़ा जी ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का शुक्रिया,,,
Comment by Afroz 'sahr' on November 8, 2017 at 3:55pm
आदरणीय आरिफ़ जी ग़ज़ल को समय देने के लिए आपका मश्कूर हूँ,,,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
10 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
17 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service