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लघुकथा--एटीकेट्स

" विजेश ! विजेश ! हू इज़ विजेश ।"
" आई एम विजेश सर ।" डरता-डरता विजेश सिर झुकाकर खड़ा हो गया ।
" व्हेरी गुड ! यू आर विजेश । तुम्हारी कई दिनों से शिकायतें आ रही है कि तुम क्लास और स्कूल परिसर में गुटखा-पाऊच खाते हो । क्या यह सच है ? जवाब दो ।"
थोड़ी चुप्पी के बाद वह साहस जुटाकर बोला-" सॉरी सर , बट आज के बाद कभी नहीं खाऊँगा । प्रॉमिस सर !"
" ओके ! सीट डाउन एण्ड मैण्टेन यूअर एटीकेट्स । अब सभी बुक निकालकर रीडिंग शुरू करें ।" पूरी क्लास लेसन रीडिंग में तल्लीन हो गई । थोड़ी ही देर में सर ने पेन में से रिफिल निकाली और कान से मैल निकालने लगे । जेब से सुपारी के दाने निकाले और चबाने लगे । कुछ लड़के अपने पास बैठे साथी को कोहनी मारकर सर कि ओर इशारा कर रहे थे ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment by Dr. Vijai Shanker on November 12, 2017 at 11:13pm
बात बहुत साधारण सी है परन्तु है बड़ी सारगर्भित। बधाई, आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी , सादर।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 12, 2017 at 12:09pm
आज के दौर के बहुत ही ज्वलंत मुद्दों को उभारा है आपने । व्यंग्य, कटाक्ष सब कुछ। मां-बाप शिक्षक, अफ़सर, सहकर्मी सभी ऐसे ही दोषों/विकारों से पीड़ित हैं। दूसरों की जो बात/आदत हमें बुरी लगती है, वही/वैसी ही आदत हम में होती है, जिसे हम जानते हुए भी दूर नहीं कर पाते। समाज बुरे संक्रमण काल से गुजर रहा है। आचार-संहिता/सेंसरशिप हर जगह ज़रूरी हो गई है। हार्दिक बधाई आपको आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ साहिब। अभी कुछ दिन पहले ही घर पर अंग्रेजी माध्यम के नवमी कक्षा के बच्चों को मैंने शब्द 'ऐटीकेट्स' की स्पेलिंग व हिंदी अर्थ बता कर इस शब्द से परिचित कराया था!!! अंग्रेज़ी में शीर्षक व आम संवादों से रचना में स्वाभाविकता आई है।
/सीट डाउन/= सिट डाउन

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