मुक्त हृदय से आज करूँ मैं, सबका ही सत्कार,
माँ वीणा सद्ज्ञान मुझे दो, जग में करूँ प्रसार ||
माँ-बापू के सद्कर्मों से, आया माँ की गोद।
मिला छत्र छाया में उनके,जीवन का आमोद।।
किये बहत्तर वर्ष पार ये, बिना किसी अवसाद
स्वर्गलोक से मिलता मुझको,उनका आशीर्वाद।।
माँ-बापू से पाया मैंने,जीवन में संस्कार।
मिला सनातन धर्म रूप में, मुझको भारत वर्ष ।
ऋषि-मुनियों का देश यही है,इसका मुझको हर्ष ||
वन-उपवन में रोप सकूँ मै, कुछ सुन्दर से वृक्ष,
मिले सफलता जनमानस को,पूर्ण करें सब लक्ष्य ||
चुका सकूँ मैं भारत माँ का, अंशमात्र भी भार।
संस्कारी परिवार हमारा,खुशबूं करें प्रदान।
मिला मुझे सहयोग सभी का,पाने को मुस्कान।।
गुरुवर को मैं दे पाऊँ क्या, ऐसी कुछ सौगात?
रवि के ख कहाँ दीप की,क्या कोई औकात।।
प्राण प्रिया का सदा रहेगा, जीवन भर आभार।
मुक्त हृदय से आज करूँ मैं, सबका ही सत्कार।
माँ वीणा सद्ज्ञान दो ऐसा, जग में करूँ प्रसार ।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
- लक्ष्मण रामानुज लडीवाला
Comment
जी | सही कहा आपने आदरणीय Vijay Nikore जी | आजकल ऐसी भावनाएं देखने में नहीं आती | जिन्दगी तनावभरी हो गई और संवेदनाएं मर गई | एक साहित्यकार का रचना धर्म निभाते हुए समाज को दिशा दे सके | यह कर्त्तव्य तो अपना है ही | सादर आभार आपका आदरनी
आपकी सम्बल प्रदान करती प्रेरक प्रतिक्रया देकर उत्साहवर्धन करने और सार्थक सुझावों के लिए हार्दिक आभार आदरणीय रामबली गुप्ता जी | संशोधन कर दिया है | सादर नमन
आपकी प्रेरक प्रतिक्रया के लिए हार्दिक आभार आपका श्री सुरेन्द्र कुंमर शुक्ल भ्रमर जी | सादर
बहुत बहुत आभार आपका श्री बृजेश कुमार बृज जी
गीत रचना सराहने के लिए हार्दिक आभार आपका श्री मोहम्मद आरिफ साहब
हार्दिक आभार आपका श्री सुरेन्द्र नाथ सिंह कुश्क्षत्रप जी
//माँ-बापू के सद्कर्मों से, आया माँ की गोद।
मिला छत्र छाया में उनके,जीवन का आमोद।।//
माता-पिता के प्रति ऐसी भावना हम सभी में जीवन भर कायम रहे तो कितना अच्छा है।
सुन्दर गीत के लिए बधाई।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति और सार्थक
भ्रमर ५
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