काफिया : आन ,रदीफ़ : है
बह्र : २२१ २१२१ १२२१ २१२
राजाधिराज का गिरा’ दुर्जय कमान है
सब जान ले अभी यही’ विधि का विधान है |
अदभूत जीव जानवरों का जहान है
नीचे धरा, समीर परे आसमान है |
संसार में तमाम चलन है ते’री वजह
हर थरथरी निशान ते’री, तू ही’ जान है |
जो भी जमा किये यहाँ’ रह जायगा यहीं
कुछ साथ जायगा नहीं’ फिर क्यों गुमान है |
तू कौन है ? नहीं पता’ कुछ भी अभी यहाँ
घर तेरा’ कोई’ है तो’ कहाँ वो मकान है ?
इलज़ाम जो लगाया’ सभी झूठ है सनम
मैं चुप जरूर किन्तु मे’री भी जबान है |
जो ज़ख्म बेवफा ने’ दिया वो नहीं भरा
हृद चोट जो लगी, अभी’ उसका निशान है |
वो नोट से खरीदते’ थे वोट अब तलक
अब गैस मोल में दिया’ ना मेहरबान है |
वो पांच साल राज किये अब हिसाब दे
जन प्रश्न का जवाब ही’ तो इम्तिहान है |
इक अरब है’लोग किन्तु, मिली ताज तुझको’ ही
‘काली’ समझ करोड़ में’, तू भाग्यवान है |
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ सुरेन्द्र कुमार शुक्ल जी , सराहना के लिए हार्दिक आभार | सादर नमन
आदरणीय समर कबीर साहिब आदाब , हौसला अफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया | सादर नमन
आ मोहम्मद आरिफ साहिब आदाब, हौसला अफजाई के लिए हार्दिक आभार |सादर नमन
आ सलीम रज़ा साहिब आदाब , हौसला अफजाई के लिए सादर आभार , सकारात्मक सलाह के लिए धन्यवाद | सादर नमन
बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल ... बधाई,
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