सागर जैसी आॅंखों में,
बहते हुए हीरे मेरी माॅं के हैं,
होठों के चमन में,
झड़ते हुए फूल, मेरी माॅं के हैं,
काॅंटों की पगडंडियों में,
दामन के सहारे मेरी माॅं के हैं,
गोदी के बिस्तर में,
प्यार की चादर मेरी माॅं की हैं,
प्यासे कपोलों,
पर छलकते ये चुंबन मेरी माॅं के हैं,
ईश्वर से मेरी,
कुशलता की कामना मेरी माॅं की हैं,
इतराता हूॅं इतना,
पाकर यह जीवन,
मेरी माॅं का है।
मौलिक व अप्रकाशित
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आदरणीय दादा श्री समर कबीर जी, आपके मार्गदर्शन हेतु मैं आपका सर्वदा ऋणी रहूंगा। इसी तरह अपका आशीर्वाद मुझे प्राप्त होता रहे। सादर आभार।
आदरणीय श्री उस्मानी जी , आपकी बधाईयां मैं शिरोधार्य करता हूं। आशा करता हेूं कि आपका स्नेह और आशीर्वाद इसी तरह मुझे प्राप्त होता रहेगा। सादर आभार।
इस समर्थन पर आपका कोटिशः आभार आदरणीय आरिफ जी
आदरणीय मनोज जी बहुत सुन्दर प्रयास है | सादर नमन
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