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आदरणीय राम अवध जी,
'मेरे खिलाफ उसने कटा दी एफआईआर' की बह्र पर आदरणीय अफ़रोज़ साहब और आदरणीय समर साहब की बात जायज़ है. मिसरे को किसी और तरह से कहना बेहतर होगा.
सादर
आदरणीय राम अवध जी,
ग़ज़ल में हास्य पर कोई एतराज कभी नहीं रहा. हास्य ग़ालिब के यहाँ भी है मीर के यहाँ भी.
सादर
//तख्ती लिखने के अनुसार नहीं की जाती है ।हम जैसा पढ़ते हैं हमारे कान जैसा सुनते हैं उसी अनुसार बह्र का निर्धारण होता है ।//
ये तो आपने बिल्कुल ग़लत बात कह दी,आपने शायद वो मिसाल नहीं सुनी कि'सो बका एक लिखा'जनाब अफ़रोज़ साहिब ने आपका जो शैर बेबह्र बताया है,वो वाक़ई बह्र में नहीं है,आपके जवाब से मुझे बहुत निराशा हुई ।
आदरणीय अजय तिवारी जी आपने जो मेरा हौसला बढ़ाया इसके लिये मैं आपका आभारी हूँ। अगर कविता में नौ रस हैं तो ग़ज़ल विधा में हास्य रस भी आ जाये तो ऐतराज क्यों। सादर पुन: शुक्रिया।
आदरणीय कालीपाद प्रसाद जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
आदरणीय कुशक्षत्रप साहब जी सादर आभार । प्रयास करूँगा रदीफ बदलने का।
आदरणीय मनोज कुमार जी सादर आभार ग़ज़ल सराहना के लिये।
आदरणीय मोहम्मद आरिफ सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
आदरणीय समर कबीर साहब जी सादर आदाब। आपके अमूल्य सलाह पर मैं विचार करूँगा। लेकिन निवेदन भी है कि जो सहज में ग़ज़ल हो जाये उसमें सरलता होती है। जबरदस्ती एक खास पैटर्न पर खास साँचे में लिखना मेरे विचार से ठीक नहीं होता है। फिर भी आपके सुझाव के अनुसार मैं कोशिश करूँगा। आपका बहुत बहुत शुक्रिया आभार।
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