काफिया : अर ; रदीफ़ : नहीं हूँ मैं
बहर : २२१ २१२१ १२२१ २१२ (२१२१)
तारीफ़ से हबीब कभी तर नहीं हूँ’ मैं
मुहताज़ के लिए कभी’ पत्थर नहीं हूँ’ मैं |
वादा किया किसी से’ निभाया उसे जरूर
इस बात रहनुमा से’ तो’ बदतर नहीं हूँ’ मैं |
वो सोचते गरीब की’ औकात क्या नयी
जनता हूँ’ शाह से कहीं’ कमतर नहीं हूँ’ मैं |
जनमत ने रहनुमा को’ जिताया चुनाव में
हर जन यही कहे अभी’ नौकर नहीं हूँ’ मैं |
अल्लाह ने दिया मेरा’ जीवन, करीम हैं
उन्नत नसीब लान से ऊपर नहीं हूँ’ मैं |
समझो मुझे प्रवाहिनी’ सरिता, बुझाती’ प्यास
खारा नमक भरा हुआ’ सागर नहीं हूँ’ मैं |
हर बात पर विकाश की’ बातें नहीं मैं’ की
मंत्री या’ बेवफा को’ई’ रहबर नहीं हूँ’ मैं |
इस देश की वजूद, हिफाज़त के’ वास्ते
खुश हो चढ़ूँ सलीब पे’, कायर नहीं हूँ’ मैं |
शब्दार्थ : लान=आजार वैजन के खुबसूरत पर्वत
रहबर-नेता ,अगुआ ; सलीब=सूली
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सराहना के लिए शुक्रिया आ आमोद श्रीवास्तव जी
बेहतरीन रचना पर मेरी बधाई स्वीकार करें
आदरणीय समर कबीर साहिब आदाब , हौसला अफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया |हर प्रकार की कमजोरी दूर करने की कोशिश जरी है | आदाब
आ मनोज कुमार जी , सराहना के लिए तहे दिल से शुक्रिया
जनाब कालीपद प्रसाद मण्डल जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करे,भाषाई कमज़ोरियों पर क़ाबू पाने का प्रयास करें ।
आ मोहम्मद आरिफ साहिब ,आदाब हौसला अफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया
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