जीने के लिए ...
जाने
कितनी दुश्वारियों को झेलती
ज़िंदगी
रेंगती हसरतों के साथ
खुद भी
रेंगने लगती है
हर कदम
जीने के लिए
ज़ह्र पीती है
हर लम्हा
चिथड़े -चिथड़े होते
आरज़ूओं के
पैबंद सीती है
जाने कब
वक़्त
ज़िंदगी की पेशानी पर
बिना तारीख़ के अंत की
एक तख़्ती
लगा जाता है
उस तख़्ती के साथ
ज़िंदगी रोज
मरने के लिए
जीती है
और
जीने के लिए
मरती है
सुशील सरना
मौलिक एवं अर्पकाशित
Comment
//जाने कब
वक़्त
ज़िंदगी की पेशानी पर
बिना तारीख़ के अंत की
एक तख़्ती
लगा जाता है //......................
वाह, वाह, वाह ! बहुत ही सुन्दर भाव। रचना का आनन्द आ गया , आदरणीय सुशील जी।
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय रामबली गुप्ता जी सृजन को अपनी मधुर प्रतिक्रिया से सुशोभित करने का दिल से आभार।
अतुकांत पर आपका प्रयास हमेशा शानदार होता है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर
आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। बेहतरीन और उम्दा रचना, बधाई आपको।
आदरणीय कालीपद जी सृजन के भावों अपनी स्नेहिल प्रतिक्रिया से अलंकृत करने का दिल से आभार।
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... प्रस्तुति के भावों को स्नेहाशीष से उत्साहित करने का दिल से आभार।
आ सुशील सरना जी ,आँख मिचौनी खेलती जिंदगी के ऊपर बहुत सुन्दर कविता के लिए बधाई स्वीकार करें
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत उम्दा और सुंदर कविता,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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