For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अचंभित हूँ ....

अचंभित हूँ
इस गहन तिमिर में भी
तुमने श्वासों के
आरोह-अवरोह को
महसूस कर लिया

अचंभित हूँ
तुमने कैसे मेरे
अबोले तिमित स्वरों को
पहचान लिया
और चुपके से
मेरे अंतर्भावों का
अपने नयन स्वरों से
शृंगार कर दिया

अचंभित हूँ
तुम कैसे मुझसे मिलने
हृदय की गहन कंदराओं में
मेरे अस्तित्व की प्रेमानुभूतियों से
अभिसार करने आ गए
मैं तो कब से
अस्तित्वहीन हो गयी थी
जाने कब तुम वहां भी
अपने अस्तित्व को
मेरे अस्तित्व में
समाहित करने आ गए

सच
जाने कितनी सांसें बीत गयी
तुम्हारी प्रतीक्षा में
अब आये हो
मेरी
बंद होती पलकों के किनारों पर
रुके नमक के सागर को
अपनी पोरों से पोंछने के लिए

मेरे
पीले होते
रक्ताभ अधरों को
अपने अधरों की मेहंदी से
शृंगारित करने के लिए

मेरी
अल्हर चूड़ियों की खनखनाहट को
अपने स्पर्शों से
पुनर्जीवित करने के लिए

भला
कैसे अचंभित न होऊं
मेरे निस्सीम प्रेम को
आज तुमने
अपने स्नेही स्पर्शों से
सदा सदा के लिए
कालजयी कर दिया
मेरी चिर प्रतीक्षा का
अंत कर
मेरे अस्तित्व को 
अनंत्य कर दिया

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 486

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on December 12, 2017 at 7:28pm

आदरणीय रामबली गुप्ता जी सृजन को अपनी मधुर प्रतिक्रिया से सुशोभित करने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on December 12, 2017 at 7:28pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।

Comment by रामबली गुप्ता on December 11, 2017 at 8:17pm

वाह बहुत ही शानदार प्रयास हुआ है आदरणीय।हार्दिक बधाई स्वीकार करें।सादर

Comment by नाथ सोनांचली on December 11, 2017 at 4:57am

आद0 सुशील जी आपने बेहतरीन कविता लिखी, बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर सादर।

Comment by Sushil Sarna on December 8, 2017 at 5:30pm

आदरणीय कालीपद प्रसाद मंडल जी सृजन के भावों को अपने स्नेह से पोषित करने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on December 8, 2017 at 5:30pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब। ..... प्रस्तुति आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया की आभारी है। हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on December 8, 2017 at 5:29pm

आदरणीय मो.आरिफ साहिब, आदाब ... प्रस्तुति के भावों को आत्मीय सम्मान देने का दिल से आभार।

Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 6, 2017 at 7:48pm

आदरणीय  सुशिल सरना जी , बहुत गहन चिंतन  के साथ लिखी गई यह कविता बहुत सुन्दर बन पडी  है | बधाई स्वीकार करें 

 

Comment by Samar kabeer on December 6, 2017 at 6:50pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Mohammed Arif on December 6, 2017 at 2:06pm

आदरणीय सुशील सरना जी आदाब,

                            प्यार में अचंभित  होना तो कभी शिकायतों की गठरी खोलना यह सिलसिला तो चलता ही रहता है । वह प्यार ही क्या जिसमें अचंभा और तकरार न हो । शायद प्यार इसी पर टिका होता है । मधुर स्मृतियों की रेशमी लड़ियों में बँधा रहता है  प्यार । बेहतरीन रचना । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service