For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक कार आकर रज़ाई बनाने वाले की दुकान के आगे खड़ी हुयी । कार के पिछले दरवाजे से साहबनुमा व्यक्ति बाहर निकला । दुकान वाले की बांछें खिल गईं । भला कौन इस तरह उसकी दुकान पर इतनी बड़ी गाड़ी लेकर आता है ।

दुकानदार से उन्मुख होते हुए साहब ने छोटे साइज़ के रज़ाई, गद्दा, तकिया और चद्दर दिखने को कहा । दुकानदार ने सोचा साहब को अपने छोटे बच्चे के लिए ये सब चाहिए, सो बड़े उत्साह से चीजें दिखने लगा । पर साहब ने बताया कि उन्हें ये सब समान अपने "डौगी" के लिए लेना है । दुकानदार बड़ी फुर्ती से उन्हें छोटे साइज़ के गद्दे तकिये, रज़ाई और चद्दर दिखने लगा । दिखाये गए समान में से छांट कर साहब ने एक-एक रज़ाई, गद्दा, तकिया और चद्दर पसंद किया और पैसे चुका कर दुकान वाले से सारा समान कार में रखने को कहकर खुद कार में सवार होने के लिए उन्मुख हुए । तभी सामने से चिथड़ों में लिपटा, ठंढ से काँपता, छड़ी के सहारे से चलता हुआ एक भिखारी सामने आ खड़ा हुआ "साहब, एक ठो चद्दर दिला दीजिये । बड़ी जाड़ा पड़ रहा है ।"

 साहबनुमा व्यक्ति को यूं अपना रास्ता रोका जाना अच्छा नहीं लगा । बुरा सा मुंह बनाते हुए उसने भिखारी को दुतकार दिया और अपने "डौगी" का बिस्तर गाड़ी में रखवा कर रवाना हो गए।

 

भला भिखारी के "डौगी" जैसे भाग्य कहाँ ।  

 

.... मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 633

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by pratibha pande on December 11, 2017 at 1:50pm

बढिया लघुकथा आदरणीया नीलम जी बधाई स्वीकार करें। आदरणीय सोमेश जी की बात से सहमत हूँ अंतिम पंक्ति के बिना भी कहानी कथ्य संप्रेषण मे सफल है

Comment by Neelam Upadhyaya on December 11, 2017 at 9:46am
अदरणीय समर कबीर जी एवं अदरणीय रक्षिता जी, लघु कथा पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
Comment by Neelam Upadhyaya on December 11, 2017 at 9:43am
अदरणीय सोमेश जी, बहुत बहुत धन्यवाद । आइंदा भी आप के मार्गदर्शन की आवश्यकता रहेगी ।
Comment by Neelam Upadhyaya on December 11, 2017 at 9:41am
अदरणीय उस्मानी जी, मार्गदर्शन के लिए बहुत आभार । आइंदा भी आप के मार्गदर्शन की आकांक्षी रहूँगी ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 10, 2017 at 5:50pm

 तथाकथित आधुनिक रईस लोगों की एक मानसिकता को चित्रित करती बढ़िया भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया  Neelam Upadhyaya  जी। मैं आदरणीय सोमेश कुमार जी की टिप्पणी से सहमत हूं। इस पंक्ति की आवश्यकता नहीं लगती। 

इसी प्रकार भाव पुनरावृत्ति वाली वाक्यांश // और अपने "डौगी" का बिस्तर गाड़ी में रखवा कर// को हटाया जा सकता है। दुतकारता तो प्राय: हर कोई है। अंत में उस भिखारी या दुकानदार का तीखा संवाद जोड़ा जा सकता है। /डौगी= डॉगी/

Comment by somesh kumar on December 10, 2017 at 3:48pm

भला भिखारी के "डौगी" जैसे भाग्य कहाँ 

मेरे विचार में बिना निष्कर्ष के भी लघुकथा अपनी बात कहने में सफल है |

रचना के लिए बधाई 

Comment by रक्षिता सिंह on December 8, 2017 at 1:26am

आदरणीय, नीलम जी

दिल को छू लेने वाली बहुत ही सुन्दर लघुकथा।

बहुत बहुत बधाई।

Comment by Samar kabeer on December 7, 2017 at 10:11pm

मोहतरमा नीलम उपाध्याय जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service