उसे होश में आया देख डॉक्टर का नुमाइंदा पास आया और फरमान सुनाने लगा । अपने घर बात करके 15 हज़ार रुपये काउंटर में जमा करवा दो बाकि के पैसे डिस्चार्ज के समय जमा करा देना । मगर साहब मै बीमार नहीं, बस दो दिन से भूखा हूँ। उसकी आवाज़ घुट के रह गई, नुमाइंदा जा चुका था ।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बढ़िया। कम शब्दों में विसंगति बाख़ूबी उभारते हुए बेहतरीन भावपूर्ण कटाक्षपूर्ण सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब नादिर ख़ान साहिब। बहुत दिनों बाद आपकी रचना यहां पढ़ कर बहुत ख़ुशी हुई। कृपया रचना में दोनों संवादों को इन्वर्टेड क़ौमाज़ में रखकर एक के नीचे दूसरा लिख दीजिए।
आदरणीय नादिर खान जी आदाब,
बहुत भी कटाक्षपूर्ण लघुकथा हुई है । भूख और भूख का मुद्दा दोनों ही शाश्वत बन गए हैं । दिली मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।
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