1.
शायद आज बच जाओ
साम दाम दण्ड भेद से
मगर एक कैमरा
नज़र रखे है
हर करतूत पर
बिना साम दाम दण्ड भेद के .....
2.
मत उलझाइये खेल
मत कीजिये घाल-मेल
सीधी है ... सीधी ही रहने दीजिये
जिंदगी की रेल
3.
उठ रहे हैं बच्चे
सूरज के जागने से पहले
ठिठुर रहे हैं बच्चे
पीठ में बोझ लिए
झेल रह हैं बच्चे
भविष्य का दण्ड ....
4
आजकल देरी से आते हो
जल्दी चले भी जाते हो .....
कहाँ ले जाते हो
हमारे हिस्से की धूप
सूरज भाई ...
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
जनाब नादिर साहिब ,गज़ब की छड़िकाएँ हुई हैं ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
अच्छी क्षणिकाएँ हैं आ. नादिर भाई. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
आदरणीय लक्ष्मण धामी साहब बहुत शुक्रिया, आपने रचना को मान दिया। ....
आदाब जनाब समर कबीर साहब, आपकी टिप्पणियाँ हर रचनाकर के लिए प्रेरणादायी होती हैं ,बहुत शुक्रिया आपका भी। ...
आदरनीय अजय तिवारी जी आपको रचना प्रभावशली लगी लेखन सर्थक हुआ दिल से आपको धन्यवाद.....
आदरनीय सुरेन्द्र नाथ जी आपने कोशिश को सराहा आपका बहुत शुक्रिया ......
बहुत खूब , हार्दिक बधाई ।
जनाब नादिर ख़ान साहिब आदाब,बहुत उम्दा,कमाल की क्षणिकाएं लिखी हैं आपने,इस बहतरीन प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।कि
उठ रहे हैं बच्चे
सूरज के जागने से पहले
ठिठुर रहे हैं बच्चे
पीठ में बोझ लिए
झेल रह हैं बच्चे
भविष्य का दण्ड ....
आदरणीय नादिर खान जी, इस प्रभावशाली काव्य-प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.
शायद आज बच जाओ
साम दाम दण्ड भेद से
मगर एक कैमरा
नज़र रखे है
हर करतूत पर
बिना साम दाम दण्ड भेद के .....
क्या खूब कही आपने जनाब,बेहद खूबसूरत। बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर
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