जीवन-कविता
बिटिया बैठी पास में
खेल रही थी खेल
मैं शब्दों को जोड़-तोड़
करता मेल-अमेल |
उब के अपने खेल से
आ बैठी मेरी गोद
टूट गया यंत्र भाव
मन को मिला प्रमोद |
बिना विचारे ही पत्नी ने
दी मुझको आवाज़
मैं दौड़ा सिर पाँव रख
ना हो फिर से नाराज़ |
लौटा सोचता सोचता
क्या जोड़ू आगे बात
पाया बिटिया पन्ना फाड़
दिखा रही थी दांत |
खिला देख चेहरा उसका
मिली दुर्लभ सुगंध
जीवन सुंदर पुष्पित बाग है
कविताएँ उसकी गंध |
मौलिक एवं अप्रकाशित
रचना तिथि-12/12 /17
Comment
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति..बधाई
आपके स्नेहाशीष बना रहे \रचना को अपना समय देने एवं उत्साहवर्धन के लिए साधुवाद |
आद0 सोमेश कुमार जी सादर् अभिवादन। बेहतरीन सर्जन हुई हैं। इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये।
जनाब सोमेश कुमार जी आदाब,इस सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
प्रिय सोमेश कुमार जी आदाब,
बिटिया को केंंद्र में रखकर अच्छी भावाभिव्यक्ति का नज़राना पेश किया । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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