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जीवन-कविता

बिटिया बैठी पास में

खेल रही थी खेल

मैं शब्दों को जोड़-तोड़

करता मेल-अमेल |

उब के अपने खेल से

आ बैठी मेरी गोद

टूट गया यंत्र भाव

मन को मिला प्रमोद |

बिना विचारे ही पत्नी ने

दी मुझको आवाज़

मैं दौड़ा सिर पाँव रख

ना हो फिर से नाराज़ |

लौटा सोचता सोचता

क्या जोड़ू आगे बात

पाया बिटिया पन्ना फाड़

दिखा रही थी दांत |

खिला देख चेहरा उसका

मिली दुर्लभ सुगंध

जीवन सुंदर पुष्पित बाग है

कविताएँ उसकी गंध |

मौलिक एवं अप्रकाशित

रचना तिथि-12/12 /17

 

      

Views: 394

Comment

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 16, 2017 at 8:34pm

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति..बधाई

Comment by somesh kumar on December 13, 2017 at 9:59am

आपके स्नेहाशीष बना रहे \रचना को अपना समय देने एवं उत्साहवर्धन के लिए साधुवाद |

Comment by नाथ सोनांचली on December 13, 2017 at 4:13am

आद0 सोमेश कुमार जी सादर् अभिवादन। बेहतरीन सर्जन हुई हैं। इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये।

Comment by Samar kabeer on December 12, 2017 at 5:05pm

जनाब सोमेश कुमार जी आदाब,इस सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Mohammed Arif on December 12, 2017 at 2:08pm

प्रिय सोमेश कुमार जी आदाब,

                          बिटिया को केंंद्र में रखकर अच्छी भावाभिव्यक्ति का नज़राना पेश किया । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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