सूरते जान जो'रौनक वो, कही' नूर नहीं
यह अलग बात है दुनिया में' वो मशहूर नहीं
प्यार करता हूँ’ मैं’ पागल की’ तरह पर क्या’ करूँ
हर समय प्यार जताना उसे’ मंज़ूर नहीं |
सांसदों में अभी’ दागी हैं’ बहुत से नेता
दाग धोना बड़ा’ दू:साध्य है’, नासूर नहीं |
चाह ऐसी कि सज़ा सबको’ मिले जो दोषी
पर सज़ा सबको’ मिले ऐसा’ भी’ दस्तूर नहीं |
लोक सरकार अभी, राज है’ जनता का यह
हैं सभी स्वामी’ यहाँ ,कोई’ भी’ मजदूर नहीं |
देखने में तो'' महरबां लगे सारे नेता
किन्तु दिल से तो' को’ई भी कभी' अक्रूर नहीं |
थाम कर स्वांस प्रतीक्षा की’ है’ अच्छे दिन का
की है’ जो कोशिशें’ लगता है’ वो’ दिन दूर नहीं |
बन सितारा यहीं ‘काली’ कि गगन नाप लिया
आफताबी है’ चमक पर कभी मगरूर नहीं |
‘अक्रूर= दयाबान, कृपालु
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
जनाब काली पद साहिब ,ग़ज़ल की अच्छी कोशिश की है आपने ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं । मतला बदलना पड़ेगा ,अगर चाहें तो यह करलें । सूरते यार पे जो है वो कहीं नूर नहीं । यह अलग बात है दुनिया में वो मशहूर नहीं । शेर6 का उला मिसरा यूँ कर सकते हैं ---देखने में तो महर बाँ लगें सारे नेता ।। और इसका सानी यूँ करसकते हैं ---किन्तु दिल से तो कोई भी कभी अक्रूर नहीं । मक़्ते का सानी मिसरा यूँ किया जा सकता है ,--अफ्ताबी है चमक पर कभी मग़रूर नहीं ।।
जनाब कालीपद प्रसाद मण्डल जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
मतले में ईता दोष है ,देखियेग ,दोनों मिसरों में 'हूर' ।
'देखने में सभी मिहरबान ही लगते नेता'
इस मिसरे को यूँ कर लें :-
'मह्रबाँ लगते हैं दिखने में तो सारे नेता'
मक़्ते का सानी मिसरा लय में नहीं है ।
आदरणीय कालीपद प्रसाद जी आदाब,
शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी अमूल्य राय साझा करेंगे ।
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