नव वर्ष २०१८ के लिए हार्दिक शुभकामनाओं सहित |
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काफिया : अर ;रदीफ़ : लगता है
बहर: २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
सुन्दर फूलों की खुशबू मोहक मंजर लगता है |
फागुन आने के पहले ही, होली अवसर लगता है |
मधुमास में’ टेसू चम्पा, और चमेली का है जलवा
श्रृंगार से धरती दुल्हन लगती, गुल जेवर लगता है |
काले बादल बरसे गांवों में, मन का आपा खोकर
जहां भी देखो नीर नीर नीर, महा सागर लगता है |
फैशन शो में सब बच्चे पहने, रंग विरंगे पोषाक
कोई इनमे लगता राजा, कोई जोकर लगता है |
हीरे मोती चुनकर लाये, पहनाई जब ये माला
महँगा है ये हार कहे, वो कंकड़ पत्थर लगता है |
शुभ्र चमकदार चाँदनी का, पर्त पड़ी है पर्वत पर
धरती पर देखो चन्दा का’ बिछाया चादर लगता है |
शीत लहर चलती पहाड़ से, करती सबको दुखी यहाँ
ठण्डी का तीव्र डंक सहना, हमको दूभर लगता है |
पढ़ लिखकर हुए सयाना, टाई बांधे चलता बेटा
ठाठ बाट देखो उसका बेटा तो अफसर लगता है |
मीठी है बोली उनकी, कोयल भी शर्मा जाय किन्तु
‘कालीपद’ का’ करारा तंज ही’, सबको खंजर लगता है |
मौलिक एवं अप्राकाषित
Comment
आ लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
ग़ज़ल पर शिरकत करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया |सादर
आदरणीयसलीम रज़ा रेवा जी ग़ज़ल पर शिरकत करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया
ग़ज़ल में लय लाने के लिए हम जैसों के लिए क्या करना चाहिए, जिन्होंने कभी कुछ भी गाया न हो | दोहे साधारणत: एक ही ले में गाये जाते हैं ,परन्तु ग़ज़ल तो भिन्न भिन्न लय में गायी जाती है |सादर
आदरणीय समर कबीर साहिब विस्तृत मार्ग दर्शन के लिए तहे दिल से शुक्रिया |सादर
हार्दिक बधाई , आदरणीय काली प्रसाद जी।
मतला यूँ कर लें :-
'सुंदर फूलों की ख़ुशबू से मोहक मंज़र लगता है
फागुन आने से पहले ही होली अवसर लगता है'
दूसरे शैर का सानी मिसरा लय में नहीं है ।
तीसरे शैर के ऊला में 'मन के' को "मन का" कर लें ,और इस शैर का सानी मिसरा लय में नहीं हेदेखियेगा ।
4थे शैर का ऊला मिसरा लय में नहीं,और सानी को उस तरह करलें तो गेयता बहतर होगी :-
'कोई इनमें लगता राजा कोई जोकर लगता है'
5वाँ शैर यूँ कर लें :-
'हीरे मोती चुनकर लाये,पहनाई जब ये माला
मंहगा है ये हार कहे वो कंकड़ पत्थर लगता है'
बाक़ी अशआर भी समय चाहते हैं ।
आदरणीय समर कबीर साहिब ,आदाब , हौसला अफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया |
जनाब कालीपद प्रसाद मण्डल जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
ग़ज़ल पर पुनः आता हूँ ।
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