बस आज की रात निकल जाए किसी तरह से, फिर सोचेंगे, यही चल रहा था उसके दिमाग में| दिन तो किसी तरह कट गया लेकिन रात तो जैसे हर अनदेखा और अनसोचा डर सामने लेकर आ खड़ी होती है और आज की रात तो जैसे अपनी पूरी भयावहता के साथ बीत रही थी| डॉक्टर की दी हुई हिदायत कि आज की रात बहुत भारी है, उसे रह रह कर डरा देती थी|
कितनी बार उसने दबे स्वर में मना भी किया था कि जिंदगी के प्रति इतने लापरवाह भी मत रहो| लेकिन राजन ने कभी सुनी थी उसकी, बस एक बड़े ठहाके में उसकी हर बात उड़ा देता| "जिंदगी उनका वरण करती है जो उसे जी सकते हैं, मरने से पहले इसके खौफ में क्यूँ जीना", यह वाक्य कितनी बार ही उसने सुना था|
"लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि सावधानियाँ न बरती जाएँ", उसकी इस बात पर वह खिलखिला देता| राजन की स्पोर्ट्स बाइक उसे कभी कभी यमराज के वाहन जैसी लगती, लेकिन डर के मारे कभी उसने यह बात अपनी जुबान पर नहीं लायी| कल भी राजन यही कह कर निकला था कि एक घंटे में आता हूँ, फिर मेले में चलेंगे और फिर उसके दुर्घटना की खबर आयी|
"जिंदगी में अगर मेरी बाइक नहीं रही तो शायद मैं भी नहीं रहूँगा, यह मेरी जान है", एक दिन राजन ने कहा था तो उसका कलेजा काँप गया| वह जितना ही उसको बाइक से दूर रखने की कोशिश करती, राजन उसे उतना ही चिढ़ाता| और आज राजन अपने बुरी तरह जख्मी शरीर और पैरों में कई फ्रैक्चर के साथ हस्पताल में पड़ा था|
शाम से उसने कई बार प्रार्थना की कि बस एक बार वह ठीक हो जाए, फिर उसे बाइक को हाथ भी नहीं लगाने देगी| जैसे जैसे रात बीतती जा रही थी, वह अपनी प्रार्थना को बढ़ाती जा रही थी| उसी समय राजन के शरीर में हलचल हुई और उसके मुख से अस्फुट सी आवाज़ निकली "मेरी बाइक?
उसने झट से उठकर एक बार हाथ जोड़े और गौर से राजन के चेहरे को देखने लगी| उसकी प्रार्थना अब भी बदस्तूर जारी थी, बस बाइक को राजन से दूर हटाने का विचार उसके जेहन में कमजोर पड़ता जा रहा था|
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया आ बृजेश कुमार 'ब्रज' जी
बहुत ही खूबसूरती से दर्द का चित्रण किया है..सादर
बहुत बहुत शुक्रिया आ महेंद्र कुमारजी, वह महिला राजन की पत्नी भी हो सकती है और उसकी अंतरंग महिला मित्र भी| धन्यवाद इस टिपण्णी के लिए
रफ़्तार के जुनून पर केन्द्रित अच्छी लघुकथा है आ. विनय जी. दुआ करने वाली महिला पात्र राजन की कौन थी, यदि आप इसका भी ज़िक्र कर देते तो बेहतर रहता. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online