गुरु द्रोणाचार्य ने दुर्योधन एवं युधिष्ठिर को एक-एक अच्छे और बुरे व्यक्ति को ढूँढ़ कर लाने को कहा।शाम को दोनों खाली हाथ वापस आ गए।
-क्यूँ, क्या हुआ?खाली हाथ क्यूँ आया',गुरूजी ने दुर्योधन से पूछा।
-गुरुदेव! मैंने बहुत कोशिश की,पर कोई भी ऐसा न मिला जिसमें एक भी बुराई न हो।
-युधिष्ठिर ,तुम क्यूँ खाली हाथ आ गए?'
-आचार्य! मुझे कोई ऐसा न मिला जिसमें एक भी अच्छाई न हो।'
आचार्य मुस्कुराये।
-"युधिष्ठिर समझ गए,पर दुर्योधन आज भी नासमझ बना बैठा है;चाहे लेखन में हो,पत्रकारिता में, .....या राजनीति में",रघु की बात पर शम्भू ने हामी भरी।
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"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय विजय जी,आपका शुक्रिया।
आदरणीय सुरिंदर जी,आपका शुक्रिया।
लघु कथा में अच्छा संदेश है, गहराई है ... हार्दिक बधाई मनन जी।
इस अच्छी लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई, मनन कुमार जी
एक अच्छी सीख देती रचना के लिए बहुत बहुत बधाई हो जी।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय आरिफ भाई।
आदरणीय मनन कुमार जी आदाब,
महाभारत कालीन पात्रों को आधार बनाकर बहुत ही गहरी बात कही आपने । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
बहुत बहुत आभार आदरणीय विजय शंकर जी।
बात गहरी और सही है।हम किसी व्यक्ति में भी वही खोजते हैंजो हम खोजना चाहते हैं।
बधाई , इस प्रस्तुति पर , आदरणीय मनन कुमार सिंह जी , सादर।
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