१२२२,१२२२,१२२२
नई रुत का अभी तूफ़ान बाकी है।
निज़ामत का नया उन्वान बाकी है।
निवाले छीनकर ख़ुश हो मेरे आका,
अभी अपना ये दस्तरख़ान बाकी है।
अभी टूटा नहीं है सब्र का पुल भी,
ज़रा सा और इत्मीनान बाकी है।
अभी थोड़ी सी घाटी ही तो खोई है,
अभी तो सारा हिन्दुस्तान बाकी है।
हथेली पर तुम्हारी रख तो दीं आँखें,
हमारे पास सुरमेदान बाकी है।
कयामत के बचे होंगे महीने कुछ,
अभी इंसान में इंसान बाकी है।
करोगे इसपे कब यलगार, ऐ हातिम,
उम्मीदों का जो कब्रिस्तान बाकी है।
पियादों की ये आहों का तक़ाज़ा था,
वज़ारत पिट गई सुल्तान बाकी है।
खड़ी आवाम है घुटनों के बल साहब,
कहें, अब और क्या फ़रमान बाकी है।
दिमागों पर है पहरा, बज़्न है दिल पर,
हिमालय से बड़ी चट्टान बाकी है।
सच्चाई की हुई नीलाम इज़्ज़त अब,
सहमता सा खड़ा ईमान बाकी है।
निचोड़ो और थोड़ा ख़ूँ कलेजे से,
बदन में और थोड़ी जान बाकी है।
मौलिक/अप्रकाशित
- बलराम धाकड़
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया, आदरणीय रामअवध जी।
आपको ग़ज़ल पसंद आई, मेरा लिखना सार्थक हुआ।
सादर।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण जी।
सादर।
आदरणीय बलराम जी बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है। बधाई स्वीकार करें
आ. भाई बलराम जी, बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
धन्यवाद, आदरणीय बृजेश जी।
सादर।
बहुतखूब आदरणीय खूब ग़ज़ल कही..सादर
धन्यवाद, आदरणीय विजय जी।
सादर।
गज़ल पढ़ कर आनन्द आ गया। हार्दिक बधाई।
जनाब रज़ा साहब,
हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
सादर।
धन्यवाद, आदरणीय सतविंद्र जी।
सादर।
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