1222 1222 1222 1222
अगर कोशिश करेंगे आबोदाना मिल ही जाएगा।
किराए का सही कोई ठिकाना मिल ही जाएगा।
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अगर तर्के तअल्लुक का अहद कर ही चुके हो तुम,
ज़ह्न पर ज़ोर दो, कोई बहाना मिल ही जाएगा।
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हमें अच्छी बुरी कोई न कोई मिल ही जाएगी,
तुम्हें डिप्टी कलक्टर का घराना मिल ही जाएगा।
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ज़रूरत क्या है दरिया के भँवर को आज़माने की,
किनारा थाम कर चलिए, दहाना मिल ही जाएगा।
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खुशी अपनी किसी लॉकर में रख कर भूल गए…
ContinueAdded by Balram Dhakar on September 19, 2023 at 4:56pm — 2 Comments
22 22 22 22 22 2
पाँव कब्र में जो लटकाकर बैठे हैं।
उनके मन में भी सौ अजगर बैठे हैं।
'ए' की बेटी, 'बी' का बेटा, 'सी' की सास,
दुनियाभर का ठेका लेकर बैठे हैं।
कहाँ दिखाई देती हैं अब वो रस्में,
भाभीमाँ की गोद में देवर बैठे हैं।
मैं दरवाज़े पर ताला जड़ आया हूँ,
दुश्मन घर में घात लगाकर बैठे हैं।
अब हम सब सीसीटीवी की ज़द में हैं,
चित्रगुप्त कब खाते लेकर बैठे हैं।
अदबी…
ContinueAdded by Balram Dhakar on February 1, 2023 at 11:00pm — 8 Comments
Added by Balram Dhakar on October 16, 2019 at 10:00pm — 9 Comments
Added by Balram Dhakar on February 11, 2019 at 10:30pm — 6 Comments
Added by Balram Dhakar on January 31, 2019 at 10:30pm — 14 Comments
Added by Balram Dhakar on January 14, 2019 at 4:44pm — 14 Comments
221, 2121, 1221, 212
आरोप ये गलत है कि पुष्पित नहीं हुआ।
जीवन सरोज खिल के हाँ सुरभित नहीं हुआ।
छल, साम, दाम, दण्ड, कुटिलता चरम पे थी,
ऐसे ही कर्ण रण में पराजित नहीं हुआ।
कैसा ये इन्क़लाब है, बदलाव कुछ नहीं,
अम्बर अभी तो रक्त से रंजित नहीं हुआ।
गिरकर संभल रहे हैं, गिरे जितनी बार हम,
साहस हमारा आज भी खण्डित नहीं…
Added by Balram Dhakar on December 18, 2018 at 4:00pm — 14 Comments
1212,1122,1212,22/112
तमाम ख़्वाब जलाने से, दिल जलाने से।
चलो धुंआ तो उठा, इस गरीबख़ाने से।
हमें अदा न करो हक़, हिसाब ही दे दो,
नदी खड़ी हुई है दूर क्यों मुहाने से।
चराग़ ही के तले क्यों अंधेरा होता है,
ये राज़ खुल न सकेगा कभी ज़माने से।
वो सूखती हुई बेलों को सींचकर देखें,
ख़ुदा मिला है किसे घंटियाँ बजाने से।…
Added by Balram Dhakar on December 12, 2018 at 9:55pm — 14 Comments
2122 2122 212
काँच पत्थर से भले टकरा गया।
ज़िंदगी का फ़लसफ़ा समझा गया।
फ़िर सियासत में हुई हलचल कहीं,
मीडिया के हाथ मुद्दा आ गया।
सारी दुनिया एक कुनबा है अगर,
आयतन रिश्तों का क्यों घटता गया?
इक बतोलेबाज की डींगें सुनीं,
आदमी घुटनों के ऊपर आ गया।
फिर किसी औरत का दामन जल…
ContinueAdded by Balram Dhakar on November 2, 2018 at 3:30pm — 19 Comments
चन्द अश्आर मेरे अश्क़ से बहकर उतरे।
जो पसीने में हुए तर, वही बेहतर उतरे।
तेरी यादों के यूँ तूफ़ां हैं दिलों पे क़ाबिज़,
जैसे बादल कोई पर्बत पे घुमड़कर उतरे।
स्याह रातों में तेरा ऐसे दमकता था बदन,
जिसतरह चाँद पिघलकर किसी छत पर उतरे।
मैं तुझे प्यार करूँ, और बहुत प्यार करूँ,
ऐसे जज़्बात मेरे दिल में बराबर उतरे।
ऐसी ज़ुल्मत…
ContinueAdded by Balram Dhakar on October 30, 2018 at 11:47pm — 20 Comments
1212, 1122, 1212, 22
अजीब बात है, दुश्मन से यार होने तक,
वो मेरे साथ था, मेरा शिकार होने तक।
उबलते खौलते सागर से पार होने तक,
ख़ुदा को भूल न पाए ख़ुमार होने तक।
हमें भी कम न थीं ख़ुशफ़हमियां मुहब्बत में,
हमारा दर्द से अव्वल क़रार होने तक।
तुम्हारा ज़ुल्म बढ़ेगा, हमें ख़बर है ये,
तुम्हारे हुस्न का अगला शिकार…
Added by Balram Dhakar on October 29, 2018 at 1:40pm — 20 Comments
इरादा तो था मुहर्रम को ईद कर देंगे।
तरीक़ा उनका था जैसे शहीद कर देंगे।
वो एक बार सही महफ़िलों में आएं तो,
उन्हें हम अपनी ग़ज़ल का मुरीद कर देंगे।
उम्मीद बन के जो इस ज़िन्दगी में शामिल हो,
तो कैसे तुमको भला नाउम्मीद कर देंगे।
जो तुमने ख़्वाब भी देखे बराबरी के तो,
वो ऐसे ख़्वाब की मिट्टी…
Added by Balram Dhakar on October 27, 2018 at 8:18pm — 20 Comments
2122 2122 2122 212
हर दुआ पर आपके आमीन कह देने के बाद
चींटियाँ उड़ने लगीं, शाहीन कह देने के बाद
आपने तो ख़ून का भी दाम दुगना कर दिया
यूँ लहू का ज़ायका नमकीन कह देने के बाद
फिर अदालत ने भी ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली
मसअले को वाक़ई संगीन कह देने के बाद
ये करिश्मा भी कहाँ कम था सियासतदान का
बिछ गईं दस्तार सब कालीन कह देने के…
Added by Balram Dhakar on October 24, 2018 at 12:00am — 20 Comments
1222,1222,1222,1222
ज़रूरी है अगर उपवास, रोज़ा भी ज़रूरी है।
रवाज़ों का ज़रा होना अलहदा भी ज़रूरी है।।
हमें ये फ़ख़्र होता है कि हम हिंदौस्तानी हैं,
हमारे बीच हमदर्दी का सौदा भी ज़रूरी है।
मनाने रूठ जाने के लिखे हों क़ाइदे जिसमें,
मुहब्बत के लिए ऐसा मसौदा भी ज़रूरी है।
किसानों के लिए बिजली ओ पानी ही नहीं काफ़ी,
उन्हें ख़सरा,…
Added by Balram Dhakar on February 21, 2018 at 12:23pm — 12 Comments
१२२२,१२२२,१२२२
नई रुत का अभी तूफ़ान बाकी है।
निज़ामत का नया उन्वान बाकी है।
निवाले छीनकर ख़ुश हो मेरे आका,
अभी अपना ये दस्तरख़ान बाकी है।
अभी टूटा नहीं है सब्र का पुल भी,
ज़रा सा और इत्मीनान बाकी है।
अभी थोड़ी सी घाटी ही तो खोई है,
अभी तो सारा हिन्दुस्तान बाकी है।
हथेली पर तुम्हारी रख तो दीं आँखें,
हमारे पास सुरमेदान बाकी है।
कयामत के बचे होंगे महीने कुछ,
अभी इंसान में इंसान बाकी…
Added by Balram Dhakar on January 23, 2018 at 6:18pm — 16 Comments
1222, 1222, 1222, 1222
चलो ये मान लेते हैं कि दफ़्तर तक पहुँचती है।
मगर क्या वाकई ये डाक, अफ़सर तक पहुँचती है।
नज़र मेरी सितारों के बराबर तक पहुँचती है।
दिया हूँ, रोशनी मेरी हर इक घर तक पहुँचती है।
वहां कैसा नज़ारा है, चलो देखें, ज़रा सोचें,
नज़र सैयाद की चींटी के अब पर तक पहुँचती है।
शरीफ़ों की हवेली में ये आहें गूँजती तो हैं,
ज़रा धीरे भरो सिसकी, ये बाहर तक पहुँचती है।
किसी से भी पता पूछा नहीं उसने कभी…
ContinueAdded by Balram Dhakar on December 25, 2017 at 11:07am — 18 Comments
Added by Balram Dhakar on November 6, 2017 at 6:32pm — 26 Comments
1222-1222-1222-1222
जनम होगा तो क्या होगा मरण होगा तो क्या होगा
तिमिर से जब भरा अंतःकरण होगा तो क्या होगा
हरिक घर से यूँ सीता का हरण होगा तो क्या होगा
फिर उसपे राम का वो आचरण होगा तो क्या होगा
मेरे अहले वतन सोचो जो रण होगा तो क्या होगा
महामारी का फिर जब संक्रमण होगा तो क्या होगा
वो ही ख़ैरात बांटेंगे वो ही एहसां जताएंगे
विमानों से निज़ामों का भ्रमण होगा तो क्या होगा
जमा साहस है सदियों से हमारी देह में अबतक
नसों…
Added by Balram Dhakar on October 11, 2017 at 6:00pm — 16 Comments
Added by Balram Dhakar on August 18, 2017 at 8:30pm — 18 Comments
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