1212,1122,1212,22/112
तमाम ख़्वाब जलाने से, दिल जलाने से।
चलो धुंआ तो उठा, इस गरीबख़ाने से।
हमें अदा न करो हक़, हिसाब ही दे दो,
नदी खड़ी हुई है दूर क्यों मुहाने से।
चराग़ ही के तले क्यों अंधेरा होता है,
ये राज़ खुल न सकेगा कभी ज़माने से।
वो सूखती हुई बेलों को सींचकर देखें,
ख़ुदा मिला है किसे घंटियाँ बजाने से।
शमां जलेगी, अंधेरे पनाह मांगेंगे,
हुई है रात उमीदों की लौ बुझाने से।
ये रोज़-रोज़ के फ़ाके हमें नहीं मंज़ूर,
चलो कि दूर चलें ऐसे आशियाने से।
तुम्हारी याद यहाँ चैन से न जीने दे,
ख़ुदा निज़ात ही दे दे अब इस फ़साने से।
~ बलराम धाकड़ ।
(मौलिक/अप्रकाशित)
Comment
बहुत शुक्रिया, आदरणीय विनय कुमार जी, सुख़न नवाज़ी का।
सादर।
वाह, बहुत बढ़िया और प्रभावशाली ग़ज़ल कही है आपने आ बलराम जाखड़ जी, बधाईया क़ुबूल कीजिये
आदरणीय सुरेंद्र जी, ग़ज़ल आपको पसंद आई, मेरा लिखना सार्थक हुआ।
सादर।
आद0 बलराम धाकड़ जी सादर अभिवादन। बढिया ग़ज़ल कही आपने। दिल से मुबारकबाद पेश करता हूँ
आदरणीय समर सर, सादर अभिवादन। ग़ज़ल में आपकी शिरक़त की प्रतीक्षा समाप्त हुई और हर बार की तरह बहुत कुछ सीखने को भी मिला।
हौसला अफजाई का भी बहुत बहुत शुक्रिया।
आपके सुझावों के मुताबिक़ सुधार कर लूँगा।
सादर।
जनाब बलराम धाकड़ जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
' तमाम ख़्वाब जलाने से, दिल जलाने से।
चलो धुंआ तो उठा, इस गरीबख़ाने से'
इस शैर के ऊला मिसरे में 'जलाने से', शब्द दो बार खटक रहा है,ऊला मिसरा यूँ कर सकते हैं:-
'तमाम ख़्वाब जले अपना दिल जलाने से'
' हमें अदा न करो हक़, हिसाब ही दे दो,
नदी खड़ी हुई है दूर क्यों मुहाने से'
इस शैर को यूँ कर लें तो गेयता बढ़ जाएगी:-
'हमारा हक़ न अदा कर हिसाब तो दे दे
खड़ी हुई है नदी दूर क्यों मुहाने से'
' ये राज़ खुल न सकेगा कभी ज़माने से'
इस मिसरे में रदीफ़ 'से' की जगह 'पे' हो रही है,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-
'ये अक़्द: हल नहीं होगा कभी ज़माने से'
' शमां जलेगी, अंधेरे पनाह मांगेंगे'
ये मिसरा बह्र में नहीं,क्योंकि सहीह शब्द है "शम'अ"21,आपने इस शब्द को 12 लिया है,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-
'जलेगी शम'अ अँधेरे पनाह माँगेंगे'
बाक़ी शुभ शुभ ।
आदरणीय नरेंद्र जी, बहुत बहुत धन्यवाद।
सादर।
जनाब राज़ साहब, सुख़न नवाज़ीका बहुत बहुत शुक्रिया।
ग़ज़ल में शिरक़त और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया, आदरणीय लक्ष्मण जी।
सादर।
बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय चंद्रशेखर जी।
सादर।
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