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आदरणीय समर सर, ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
कबूतर वाले शे'र में कुछ बदलाव की कोशिश करूँगा।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर सर को यह शे'र सुनाया तो था किंतु आपकी टिप्पणी बाद उनके नज़रिये में शे'र के प्रति बदलाव भी आ सकता है... हा हा हा...
सादर।
जनाब बलराम धाकड़ जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
मतला तो आप पर फिट बैठता है,हा हा हा..
आदरणीय सुशील जी, ग़ज़ल पर इस सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
सादर।
बहुत बहुत शुक्रिया जनाब सुरख़ाब बशर साहब।
सादर।
आदरणीय बलराम धाकड़ जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।
जनाब बलराम धाकड़ जी उम्दा ग़ज़ल के लिये मुबारक बाद कुबूल करें
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