चन्द अश्आर मेरे अश्क़ से बहकर उतरे।
जो पसीने में हुए तर, वही बेहतर उतरे।
तेरी यादों के यूँ तूफ़ां हैं दिलों पे क़ाबिज़,
जैसे बादल कोई पर्बत पे घुमड़कर उतरे।
स्याह रातों में तेरा ऐसे दमकता था बदन,
जिसतरह चाँद पिघलकर किसी छत पर उतरे।
मैं तुझे प्यार करूँ, और बहुत प्यार करूँ,
ऐसे जज़्बात मेरे दिल में बराबर उतरे।
ऐसी ज़ुल्मत ये सितम अब हुए आदत में शरीक़,
अब मज़ा आए अगर धड़ से मेरा सर उतरे।
उसका दिल कैसे धड़कने से करेगा इंकार,
जिसके सीने में तेरे इश्क़ का ख़ंजर उतरे।
मैं इलाही के करोबार से वाकिफ़ न हुआ,
उनको आदाब जिनके सर पे पयम्बर उतरे।
मैं अभी तक ये न समझा कि तेरे जाने के बाद,
किसतरह मेरी इन आँखों में समंदर उतरे?
~मौलिक/अप्रकाशित।
~ बलराम धाकड़ ।
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया, आदरणीय रवि शुक्ल जी, ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफजाई का।
पयम्बर वाला यह शेर मूल ग़ज़ल से खारिज़ कर दिया है।
सादर।
आदरणीय बलराम धाकड़ जी, बहुत बहुत बधाई आपको इस ग़ज़ल के लिए पयम्बर वाले शेर पर समर साहब की बात से सहमत हूँं
आदरणीया महिमा जी, ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
सादर।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय अजय तिवारी जी।
सादर।
वाहह..बहुत खूब..बधाई..
आदरणीय बलराम जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, आपको ग़ज़ल अच्छी लगी, मेरा लिखना सार्थक हुआ।
हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया, आदरणीय लक्ष्मण जी।
सादर।
हार्दिक बधाई आदरणीय बलराम जी। बेहतरीन गज़ल ।
मैं अभी तक ये न समझा कि तेरे जाने के बाद,
किसतरह मेरी इन आँखों में समंदर उतरे?
आ. भाई बलराम जी, गजल का अच्छा प्रयास हुआ है । हार्दिक बधाई ।
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